नयी दिल्ली, 26 अप्रैल कांग्रेस और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने उत्तराखंड उच्च न्यायालय केएम जोसेफ के सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को लागू नहीं करने का आरोप लगाया है और मोदी सरकार पर न्यायिक नियुक्तियों में हस्तक्षेप करने और न्यायपालिका की आजादी का उल्लंघन करने का आरोप लगाया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल, पूर्व वित्त मंत्री पी चिदम्बरम तथा पार्टी के संचार विभाग के प्रमुख रणदीप सिंह सुरजेवाला ने मोदी सरकार के इस फैसले को उसकी मनमानी करार देते हुए कहा है कि वह उन्हीं लोगों को न्यायपालिका में न्यायाधीश बनाना चाहती है जो उसके खास लोग हैं और उसके हितों के अनुकूल है।
इस बीच माकपा पोलित ब्यूरो ने भी एक बयान जारी कर इस मामले में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से हस्तक्षेप करने की मांग की है और कहा है कि न्यायधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया में किसी तरह का सरकारी हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।
श्री सिब्बल ने यहां संवाददाता सम्मेलन में कहा कि कानून कहता है कि उन्हीं न्यायाधीशों को उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया जाना चाहिए जिनके नाम की सिफारिश चयन मंडल यानी कॉलेजियम ने की है। काॅलेजियम ने न्यायमूर्ति जोसेफ के नाम की सिफारिश की थी और न्यायमूर्ति जोसेफ के बारे में जो टिप्पणी की थी उसे उच्चतम न्यायालय की वेबसाइट पर इस साल 10 जनवरी को पोस्ट किया गया जिसमें न्यायमूर्ति जोसेफ को सबसे बेहतर जज बताया गया और उनकी जमकर तारीफ की गयी, लेकिन सरकार ने उन्हें उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त नहीं किया। उल्टे उनका नाम कॉलेजियम को पुनर्विचार के लिए वापस भेज दिया गया है।
श्री सिब्बल ने कहा कि जनहित में उसे न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया को तेज करना चाहिए। उच्चतम न्यायालय में सिर्फ 24 न्यायाधीश हैं, जिनमें से छह इसी साल सेवानिवृत्त हो रहे हैं। उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के 410 पद रिक्त हैं। लोगों के मामलों पर जल्दी सुनवाई हो, इसलिए इन पदों पर नियुक्ति होनी चाहिए।