अमेरिका की राजनीति में हाल के दिनों में एक ऐसा प्रस्ताव सामने आया है, जिसने भारत सहित कई देशों की चिंता बढ़ा दी है। डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन की ओर से अमेरिकी प्रतिनिधि सभा में 12 मई को एक नया विधेयक पेश किया गया है, जिसे ‘द वन बिग ब्यूटीफुल बिल’ कहा जा रहा है। इस प्रस्ताव के अनुसार, अमेरिका में रहने वाले गैर-नागरिक जब अपने मूल देशों में पैसा भेजते हैं—जिसे आम तौर पर ‘रेमिटेंस’ कहा जाता है—तो उस पर 5% कर (टैक्स) वसूला जाएगा।
इस कर का सीधा असर अमेरिका में काम करने वाले उन लाखों प्रवासी भारतीयों पर पड़ेगा जो नियमित रूप से अपने परिवारों को पैसे भेजते हैं। इसमें H-1B, H-2A जैसे वीज़ा पर काम करने वाले लोग और ग्रीन कार्ड धारक शामिल हैं। ध्यान देने योग्य बात यह है कि यह कर केवल गैर-अमेरिकी नागरिकों पर लागू होगा, अमेरिकी नागरिकों पर नहीं।
भारत को कितना नुकसान हो सकता है?
ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) के अनुसार, यह प्रस्ताव भारत के लिए गंभीर चिंता का विषय है। साल 2023-24 में भारत को कुल 120 अरब डॉलर की रेमिटेंस प्राप्त हुई थी, जिसमें से लगभग 28%—यानी लगभग 33.6 अरब डॉलर—सिर्फ अमेरिका से आया था। यदि 5% का टैक्स लग गया, तो पैसे भेजने की लागत बढ़ने के कारण रेमिटेंस में 10-15% तक की गिरावट आ सकती है।
GTRI के संस्थापक अजय श्रीवास्तव का कहना है कि इससे भारत को सालाना लगभग 12 से 18 अरब डॉलर तक का नुकसान हो सकता है। यह न केवल देश की अर्थव्यवस्था के लिए झटका होगा, बल्कि देश के विदेशी मुद्रा भंडार पर भी असर डालेगा। डॉलर की आपूर्ति कम होने से भारतीय रुपये पर दबाव बढ़ सकता है और इसका सीधा असर रुपए की कीमत पर पड़ सकता है। अनुमान है कि रुपये में प्रति डॉलर 1 से 1.5 रुपये तक की गिरावट आ सकती है।
किन राज्यों पर होगा सीधा असर?
भारत के कई राज्य ऐसे हैं जहां हजारों-लाखों परिवार विदेशों से आने वाली रेमिटेंस पर निर्भर हैं। खासकर केरल, उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में बड़ी संख्या में लोग खाड़ी देशों और अमेरिका जैसे विकसित देशों में काम करते हैं और अपने परिवारों को पैसे भेजते हैं। इन पैसों से उनके घरों के रोज़मर्रा के खर्च, बच्चों की पढ़ाई, इलाज और मकान जैसी बुनियादी ज़रूरतें पूरी होती हैं।
यदि यह नया कर लागू होता है, तो इन परिवारों की आर्थिक स्थिति पर सीधा प्रभाव पड़ेगा। जहां एक तरफ अमेरिका में रह रहे भारतीयों के लिए पैसे भेजना महंगा हो जाएगा, वहीं भारत में रह रहे उनके परिवारों को कम पैसा मिल पाएगा।
क्या है सरकार की तैयारी?
फिलहाल भारत सरकार की ओर से इस मुद्दे पर आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन जानकारों का मानना है कि यह मामला भारत-अमेरिका व्यापार और कूटनीतिक संबंधों में अहम भूमिका निभा सकता है। भारत को यह मुद्दा अमेरिकी प्रशासन के सामने उठाना चाहिए, ताकि वहां की सरकार यह समझ सके कि ऐसे कदम न केवल भारत बल्कि अमेरिका में बसे प्रवासी समुदायों पर भी नकारात्मक असर डाल सकते हैं।
अमेरिका में क्यों उठ रहा है यह मुद्दा?
डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन की ओर से यह कदम अमेरिकी अर्थव्यवस्था और रोजगार के मुद्दों से जुड़ा बताया जा रहा है। इस प्रस्ताव के पीछे यह तर्क दिया जा रहा है कि जो पैसे अमेरिका से बाहर भेजे जाते हैं, वे अमेरिकी बाजार से बाहर निकल जाते हैं और देश की आंतरिक अर्थव्यवस्था को कमजोर करते हैं। इसीलिए, ऐसे रेमिटेंस पर टैक्स लगाकर उस पैसे का एक हिस्सा अमेरिकी सरकार के पास बनाए रखने की कोशिश की जा रही है।
हालांकि, इस कदम की आलोचना भी हो रही है। कई विशेषज्ञों का मानना है कि इससे अमेरिका में रह रहे विदेशी कामगारों पर आर्थिक बोझ बढ़ेगा और यह मानवता तथा पारिवारिक मूल्यों के खिलाफ है। इसके अलावा, यह भी कहा जा रहा है कि इससे अमेरिका की सॉफ्ट पावर यानी वैश्विक स्तर पर उसकी सकारात्मक छवि को भी नुकसान पहुंच सकता है।
क्या होना चाहिए अगला कदम?
रेमिटेंस सिर्फ पैसे का लेन-देन नहीं है, बल्कि यह दुनियाभर में बसे प्रवासियों और उनके परिवारों के बीच एक भावनात्मक और आर्थिक रिश्ता भी है। अमेरिका से आने वाली रेमिटेंस पर 5% टैक्स लगाने का प्रस्ताव यदि कानून बनता है, तो इससे न केवल भारत की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा, बल्कि लाखों भारतीय परिवारों की जीवनशैली भी प्रभावित होगी।
भारत सरकार को चाहिए कि वह इस मुद्दे को गंभीरता से लेकर अमेरिकी प्रशासन के साथ वार्ता करे और प्रवासी भारतीयों के हितों की रक्षा करे। वहीं, अमेरिका में बसे भारतीयों को भी इस प्रस्ताव की जानकारी होनी चाहिए, ताकि वे इसके प्रभावों के लिए मानसिक और आर्थिक रूप से तैयार रह सकें।