अधूरी है आठ राज्यों की विधानसभाओं में उपाध्यक्ष की सीट
लोकसभा में उपाध्यक्ष के न होने की चर्चा के बीच एक थिंक टैंक संस्था की रिपोर्ट में बताया गया है कि आठ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की विधानसभाओं में अप्रैल 2025 तक उपाध्यक्ष का पद खाली था। झारखंड में तो यह पद 20 साल से ज्यादा समय से खाली है। उत्तर प्रदेश विधानसभा ने अपने पुराने सदन के आखिरी सत्र में उपाध्यक्ष चुना था, लेकिन नई विधानसभा ने तीन साल होने के बाद भी अब तक उपाध्यक्ष नहीं चुना।
कौन–कौन से राज्य हैं जहां उपाध्यक्ष नहीं है ?
छत्तीसगढ़, जम्मू-कश्मीर, मध्यप्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना और उत्तराखंड इन राज्यों में भी उपाध्यक्ष का पद खाली है। वहीं, लोकसभा में जून 2019 से उपाध्यक्ष नहीं हैं।
संविधान के अनुसार उपाध्यक्ष की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है
संविधान के अनुच्छेद 178 के अनुसार, हर राज्य विधानसभा को दो सदस्य चुनने होते हैं — एक अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष। उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी बहुत अहम होती है। अगर अध्यक्ष का पद खाली हो जाए, तो उपाध्यक्ष ही अध्यक्ष का काम संभालता है। उपाध्यक्ष ही अध्यक्ष के खिलाफ अगर अविश्वास प्रस्ताव आता है तो उसका नोटिस लेता है और उस पर चर्चा की अध्यक्षता करता है।
पिछले साल विधानसभाओं की बैठकें कितनी चलीं?
पिछले साल राज्यों की विधानसभा की बैठकें औसतन 20 दिन चलीं, जिनका कुल समय लगभग 100 घंटे था। सबसे ज्यादा बैठकें ओडिशा में हुईं — 42 दिन, उसके बाद केरल (38 दिन) और पश्चिम बंगाल (36 दिन) का नंबर था। नगालैंड में 6 दिन, सिक्किम में 8 दिन और अरुणाचल प्रदेश, पंजाब और उत्तराखंड में 10-10 दिन बैठक हुई। बड़े राज्यों में उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश की विधानसभा 16-16 दिन बैठी।