अगर आप या आपके जानने वाले महिलाएं नाइट शिफ्ट में काम करती हैं तो यह खबर आपके लिए बेहद जरूरी है। एक हालिया ब्रिटिश स्टडी में सामने आया है कि रात की शिफ्ट में काम करने वाली महिलाओं को अस्थमा का खतरा 50% तक ज्यादा होता है। खासकर रजोनिवृत्ति (Menopause) के बाद यह जोखिम और भी बढ़ जाता है।
क्यों बढ़ता है अस्थमा का खतरा नाइट शिफ्ट में?
मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों द्वारा की गई इस रिसर्च में पता चला है कि नाइट शिफ्ट करने से शरीर की बायोलॉजिकल घड़ी यानी सर्केडियन रिद्म (Circadian Rhythm) गड़बड़ा जाती है। इसका सीधा असर शरीर के हॉर्मोन और इम्यून सिस्टम पर पड़ता है।
महिलाओं में वैसे भी टेस्टोस्टेरोन की मात्रा कम होती है और यह हॉर्मोन अस्थमा से लड़ने में मदद करता है। जब नाइट शिफ्ट के कारण हॉर्मोनल बैलेंस बिगड़ता है तो अस्थमा का खतरा और बढ़ जाता है।
स्टडी में क्या सामने आया?
इस स्टडी में यूके बायोबैंक के 2.74 लाख से ज्यादा लोगों के डेटा का विश्लेषण किया गया। इसमें पाया गया कि:
- 5.3% लोगों को अस्थमा था।
- 1.9% लोग मध्यम से गंभीर अस्थमा से पीड़ित थे।
- जो महिलाएं सिर्फ नाइट शिफ्ट में काम करती थीं, उनमें अस्थमा का जोखिम सबसे ज्यादा पाया गया।
मेनोपॉज के बाद खतरा और ज्यादा
स्टडी में यह भी बताया गया कि मेनोपॉज के बाद नाइट शिफ्ट में काम करने वाली महिलाओं में अस्थमा का खतरा दोगुना हो जाता है, खासकर अगर वे हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी (HRT) नहीं ले रही हैं। इसका मतलब है कि महिला हॉर्मोन, खासकर एस्ट्रोजन, अस्थमा से कुछ हद तक सुरक्षा प्रदान करते हैं और उनके कम होने से जोखिम काफी बढ़ जाता है।
क्या करें नाइट शिफ्ट में काम करने वाली महिलाएं?
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर आप नाइट शिफ्ट करती हैं या आपके परिवार में किसी को अस्थमा है, तो आपको सतर्क रहना चाहिए।
- नियमित स्वास्थ्य जांच कराएं।
- अगर सांस लेने में दिक्कत या खांसी-जुकाम लंबे समय तक रहे तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
- लाइफस्टाइल में सुधार करें, जैसे नींद पूरी करना, स्वस्थ आहार लेना और धूल-धुएं से बचना।