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Home»राज्य-शहर»बिहार»बिहार के गया शहर का नाम अब ‘गयाजी’, जानिए इसके पीछे की पौराणिक मान्यता और सरकार का तर्क
बिहार

बिहार के गया शहर का नाम अब ‘गयाजी’, जानिए इसके पीछे की पौराणिक मान्यता और सरकार का तर्क

swati vaishnavBy swati vaishnavMay 17, 2025Updated:May 17, 2025No Comments4 Mins Read

बिहार सरकार ने एक ऐतिहासिक और भावनात्मक फैसला लेते हुए गया शहर का नाम बदलकर अब ‘गयाजी’ कर दिया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में इस प्रस्ताव को मंजूरी दी गई। सरकार का कहना है कि इस फैसले के पीछे गया की पौराणिक, धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को सम्मान देना मुख्य उद्देश्य है।

क्यों हुआ नाम में बदलाव?

दरअसल, गया शहर हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। यह वह स्थल है जहां हर वर्ष पितृपक्ष के दौरान लाखों श्रद्धालु अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करते हैं। मान्यता है कि यहां एक बार पिंडदान कर देने से जीवनभर दोबारा इसकी आवश्यकता नहीं पड़ती। ऐसे धार्मिक महत्व को देखते हुए लोग पहले से ही गया को श्रद्धा भाव से ‘गयाजी’ कहकर पुकारते रहे हैं। अब इसे सरकारी रूप से भी मान्यता दे दी गई है।

गयासुर की कथा से जुड़ा है ‘गयाजी’

गया का इतिहास सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि पौराणिक भी है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, त्रेता युग में गयासुर नामक एक असुर ने कठोर तप करके भगवान विष्णु से वरदान प्राप्त किया था कि जो भी उसे देखे, उसके पाप नष्ट हो जाएं। इससे यमराज की कर्म व्यवस्था बिगड़ने लगी क्योंकि पापी भी स्वर्ग मांगने लगे। तब देवताओं ने गयासुर से अनुरोध किया कि वह स्थिर होकर एक तीर्थ स्थल बनने की अनुमति दे।गयासुर सहमत हुआ और भगवान विष्णु ने उसे पत्थर रूप में स्थिर कर दिया। मान्यता है कि गयासुर की पीठ पर ही आज का गया शहर बसा है, और यहीं पर विष्णुपद मंदिर में भगवान विष्णु के पैरों के निशान भी मौजूद हैं।

विष्णुपद मंदिर और सीताकुंड की विशेषता

गयाजी का सबसे प्रमुख स्थल है विष्णुपद मंदिर, जहां भगवान विष्णु के चरण चिह्न एक पत्थर पर अंकित हैं। यह वही शिला है जिसे ऋषि मरीचि की पत्नी माता धर्मवत्ता से मंगवाया गया था। इसी स्थान के पास स्थित सीताकुंड भी खास महत्व रखता है, क्योंकि माना जाता है कि यहीं माता सीता ने अपने ससुर राजा दशरथ का पिंडदान किया था।

गया (गयाजी) की धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता

गयाजी सिर्फ एक शहर नहीं, बल्कि आस्था का केंद्र है। हिंदू धर्म के साथ-साथ बौद्ध धर्म के लिए भी यह स्थल महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि भगवान बुद्ध ने यहीं ज्ञान प्राप्त किया था। इस वजह से गया की धार्मिक गरिमा कई धर्मों में समान रूप से सम्मानित है।

पितृपक्ष के दौरान गयाजी की विशेष भूमिका

पितृपक्ष के दौरान गयाजी में श्रद्धालुओं का भारी आना इस शहर की पवित्रता का परिचायक है। यहां किए गए पिंडदान से मृत आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है, इसलिए यह अनुष्ठान श्रद्धालुओं के लिए बेहद महत्वपूर्ण होता है।

चुनावी नजरिए से भी देखा जा रहा फैसला

हालांकि सरकार ने इस फैसले को धार्मिक और सांस्कृतिक आधार पर लिया है, लेकिन कुछ विश्लेषक इसे आगामी विधानसभा चुनावों से भी जोड़कर देख रहे हैं। धार्मिक भावनाओं से जुड़ा यह फैसला एक व्यापक जनसमर्थन जुटाने की रणनीति के रूप में भी देखा जा सकता है।

गया के नाम में बदलाव का सामाजिक असर

नाम बदलकर ‘गयाजी’ करने से स्थानीय लोगों में सांस्कृतिक पहचान और गर्व की भावना बढ़ेगी। इससे यहां के धार्मिक और पर्यटन स्थलों की पहचान और भी मजबूत होगी, जो आर्थिक और सामाजिक विकास में मददगार साबित होगा।

और भी फैसले लिए गए

कैबिनेट बैठक में गया का नाम बदलने के अलावा भी कई अहम निर्णय लिए गए। भारत-पाक तनाव में शहीद हुए बिहार के जवानों के परिजनों को 50 लाख रुपये की आर्थिक सहायता देने का ऐलान किया गया है। इसके साथ ही पूरे राज्य में 1069 नए पंचायत भवन बनाने की योजना को भी मंजूरी दी गई है।

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