हिमाचल प्रदेश की ठंडी वादियों में बसा एक छोटा-सा गांव है — हिंसा, जो लाहौल घाटी के जनजातीय क्षेत्र में स्थित है। देखने में यह गांव जितना शांत, सरल और सौम्य लगता है, इसकी मिट्टी उतनी ही गरमजोशी से भरी हुई है — देशभक्ति की गर्माहट से। यहां का हर रास्ता, हर घर, हर दीवार एक ही संदेश देती है — “देश पहले है।”

जहां बचपन वर्दी का सपना देखता है
इस गांव की सबसे अनोखी बात यह है कि यहाँ के बच्चे खेलकूद के मैदान में भी वर्दी की कल्पना करते हैं। स्कूली स्तर से ही उनमें अनुशासन, समर्पण और देशसेवा की भावना कूट-कूट कर भर जाती है। 72 परिवारों के इस छोटे से गांव से आज 38 युवा भारतीय सेना में सेवा दे रहे हैं, और यह आंकड़ा किसी भी बड़े शहर को भी चौंका सकता है। इन 38 में से 23 जवान वर्तमान में जम्मू-कश्मीर की सीमा पर तैनात हैं — देश के सबसे संवेदनशील और कठिन क्षेत्रों में।
वीरता पीढ़ियों से चली आ रही परंपरा है
हिंसा गांव को अगर “वीरों का गांव” कहा जाए, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। यहां देशसेवा सिर्फ एक विकल्प नहीं, बल्कि जीवन का एक आदर्श बन चुकी है। अब तक गांव के 12 पूर्व सैनिक सेना से सेवानिवृत्त हो चुके हैं और अगली पीढ़ी उनके पदचिह्नों पर चल रही है। अप्रैल 2024 में गांव से एक साथ आठ युवा अग्निवीर योजना के तहत सेना में भर्ती हुए — कोई इकलौता बेटा था, तो कोई परिवार का दूसरा बेटा।
बिना संसाधनों के बनी वीरों की कहानी
हिंसा गांव एक दुर्गम क्षेत्र में स्थित है। यहां न कोई सैन्य प्रशिक्षण अकादमी है, न ही कोई खेल प्रशिक्षण संस्थान। लेकिन इन बाधाओं ने कभी भी गांव के युवाओं का हौसला कम नहीं किया। उन्होंने अपनी मेहनत, अनुशासन और आत्मविश्वास से वह रास्ता चुना जो भारत मां की सेवा तक पहुंचता है।
देश के लिए रिश्तों से बढ़कर है कर्तव्य
गांव के अजीत सिंह बताते हैं कि उनके दो चचेरे भाई — संजीत सिंह और सुरजीत सिंह — दोनों भारतीय सेना में हैं। उनमें से एक बॉर्डर पर, तो दूसरा जम्मू-कश्मीर में तैनात है। भारत-पाक तनाव के बीच उनसे संपर्क नहीं हो पा रहा, लेकिन दिल में गर्व है कि वे देश की रक्षा कर रहे हैं।
वहीं, राम सिंह बताते हैं कि उनका बड़ा भाई पूर्ण चंद हाल ही में छुट्टी पर घर आया था, लेकिन जैसे ही सीमा पर तनाव की खबर आई, वह तुरंत समदो के लिए रवाना हो गया — वतन की हिफाजत उसके लिए परिवार से बढ़कर है।
इतिहास रचने वाले सूर चंद लारजे
गांव के जय किशन बड़े गर्व से बताते हैं कि हिंसा गांव से सबसे पहले सेना में भर्ती होने वाले जवान सूर चंद लारजे थे। उन्होंने वह बीज बोया, जिसने आज गांव को वीरों की नर्सरी बना दिया है। उनके पदचिह्नों पर चलते हुए आज गांव के आठ से अधिक जवान अग्निवीर के रूप में सेवा दे रहे हैं।
हिंसा गांव: सिर्फ एक गांव नहीं, एक प्रेरणा है
जब देश में युवा करियर की तलाश में शहरों की ओर भागते हैं, हिंसा गांव के युवा बंदूक उठाकर सरहद की ओर बढ़ते हैं। यह गांव एक आदर्श है, एक प्रतीक है उस भारत का, जहां देशसेवा आज भी सर्वोपरि मानी जाती है। यह गांव हमें याद दिलाता है कि असली हीरो वे होते हैं, जो कैमरों से दूर, सर्द हवाओं और गोलियों के बीच देश की रक्षा करते हैं।
एक सवाल हम सबके लिए
क्या हमने कभी सोचा है कि जिनके कारण हम अपने घरों में चैन से सांस ले पाते हैं, वे खुद कितनी कठिन परिस्थितियों में जीते हैं? हिंसा गांव के इन वीर जवानों के त्याग और समर्पण को सलाम करने का वक्त है। आइए, हम सभी इस गांव से प्रेरणा लें और अपने-अपने स्तर पर देश के लिए कुछ करने का संकल्प लें।