भोपाल, राज्य ब्यूरो। मध्य प्रदेश सरकार ने पदोन्नति व्यवस्था में एक बड़ा और निर्णायक बदलाव करते हुए अब उच्च पदों का “प्रभार” देने की प्रक्रिया पर पूर्ण विराम लगाने की तैयारी कर ली है। ‘प्रोमोशन रूल्स 2025’ के लागू होते ही यह तय हो गया है कि अब कोई भी विभाग वरिष्ठता के आधार पर कर्मचारियों को ऊंचे पदों का अस्थायी प्रभार नहीं देगा।
पुलिस विभाग ने इस व्यवस्था को सबसे पहले अपनाते हुए स्पष्ट कर दिया है कि अब से केवल पदोन्नति के तय मानकों के तहत ही अफसरों को ऊंचे पद मिलेंगे। सामान्य प्रशासन विभाग भी इस दिशा में तेजी से कदम बढ़ा रहा है और अन्य सभी विभागों को निर्देश जारी करने की तैयारी कर रहा है।
क्यों बदली व्यवस्था?
दरअसल, 2016 से पदोन्नति नियमों के निलंबन के चलते राज्य में हजारों कर्मचारी प्रमोशन से वंचित रह गए थे। इससे कर्मचारियों में नाराजगी फैली, जिसे देखते हुए तत्कालीन शिवराज सरकार ने ‘उच्च पद का प्रभार’ देने का रास्ता निकाला था — यानी काम भी लो और सीनियर पद का वेतनमान भी दो। गृह, जेल, स्कूल शिक्षा जैसे विभागों में इस विकल्प को अपनाया गया।
लेकिन यह एक वैकल्पिक और अस्थायी व्यवस्था थी, जिसमें आरक्षण व्यवस्था लागू नहीं होती थी। यानी जिसे वरिष्ठता के आधार पर उपयुक्त समझा गया, उसे सीधे प्रभार दे दिया गया। अब जबकि पदोन्नति नियम-2025 के तहत 36% पद अनुसूचित जाति व जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं और बाकी पदों पर योग्यता व वरिष्ठता का संतुलन रखा गया है, ऐसे में यह अस्थायी ‘प्रभार’ पद्धति कई विवादों को जन्म दे सकती है।
क्या होगा आगे?
अब जिन कर्मचारियों को प्रभार मिला था, वे प्रमोशन की दौड़ में आरक्षण की वजह से पिछड़ सकते हैं। इसी आशंका को दूर करने के लिए राज्य सरकार ने यह निर्णय लिया है कि भविष्य में किसी को भी उच्च पद का प्रभार नहीं दिया जाएगा।
पुलिस मुख्यालय ने यह कदम पहले ही उठा लिया है और सामान्य प्रशासन विभाग भी जल्द ही इस संबंध में स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी करेगा।
प्रदेश सरकार अब पदोन्नति प्रक्रिया को पूरी तरह नियमित, पारदर्शी और आरक्षण-समर्थ ढांचे में ढालने की ओर बढ़ रही है। यह कदम एक ओर जहां व्यवस्था में समानता लाएगा, वहीं दूसरी ओर पुराने प्रभार आधारित सिस्टम को खत्म कर कर्मचारियों के बीच किसी भी तरह के भ्रम और असंतोष को भी रोकेगा।