नीदरलैंड्स के हेग में जारी NATO समिट 2025 इस बार सिर्फ एक औपचारिक बैठक नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक मोड़ बनता जा रहा है। जहां एक ओर सदस्य देशों की एकजुटता की परीक्षा हो रही है, वहीं दूसरी ओर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की आक्रामक मांगें इस गठबंधन की नींव को झकझोर रही हैं।
अमेरिका की ‘5% फॉर्मूला’ ने बढ़ाया तनाव
राष्ट्रपति ट्रंप ने साफ तौर पर सभी नाटो सदस्यों से अपनी GDP का कम से कम 5% रक्षा बजट पर खर्च करने की मांग रखी है। यह प्रस्ताव न केवल चौंकाने वाला है, बल्कि कई यूरोपीय देशों के लिए लगभग असंभव भी। स्पेन ने इसे अवास्तविक करार देकर सीधे खारिज कर दिया, जिसके बाद ट्रंप ने बिना लाग-लपेट के स्पेन और कनाडा को निशाने पर ले लिया।
ट्रंप ने कहा, “स्पेन बहुत कम खर्च करता है, और यह नाटो के लिए बड़ी चुनौती है।” इस बयान ने समिट की शुरुआत से पहले ही विवाद का माहौल पैदा कर दिया है।

यूक्रेन को लेकर अलग-अलग सुर
NATO समिट में यूक्रेन के मुद्दे पर भी गहरी दरार नजर आ रही है। यूरोपीय देश और कनाडा चाहते हैं कि यूक्रेन को प्राथमिकता दी जाए, लेकिन ट्रंप इस दिशा में उत्सुक नहीं दिख रहे। कयास ये भी लगाए जा रहे हैं कि ट्रंप नहीं चाहते कि यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की समिट की सुर्खियां बनें।
इसके पीछे एक बड़ा कारण यह भी माना जा रहा है कि ट्रंप का रूस के राष्ट्रपति पुतिन से संवाद बना हुआ है। कुछ मौकों पर सीजफायर की घोषणाएं भी इसी कारण हुई हैं। विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप इस वक्त रूस को और उकसाने के मूड में नहीं हैं — और यदि यूक्रेन को NATO में शामिल किया गया, तो रूस-यूक्रेन युद्ध और भड़क सकता है।
एकजुटता या बिखराव — क्या होगा NATO का भविष्य?
इस समिट ने एक गंभीर सवाल खड़ा कर दिया है: क्या अमेरिका की आक्रामक नीति NATO को नई दिशा देगी या सदस्य देशों के बीच का टकराव इसे कमजोर कर देगा? ट्रंप के तीखे रुख से कुछ देश असहज हैं, लेकिन हो सकता है कि यही सख्ती गठबंधन को ज्यादा संगठित और जवाबदेह भी बनाए।
NATO के इतिहास में ऐसे कई मौके आए हैं जब मतभेदों के बावजूद संगठन मजबूती से उभरा है। लेकिन 2025 की यह समिट तय करेगी कि क्या यह सहयोग अब भी टिकाऊ है या बदलते भू-राजनीतिक समीकरणों के आगे झुकने वाला है।