पाकिस्तान की फौजी हिम्मत की पोल फिर खुल गई है। 21 जून 2025 को बलूचिस्तान के मस्तुंग जिले में हुए आतंकी हमले ने न सिर्फ पाकिस्तान की सुरक्षा व्यवस्था को सवालों के घेरे में ला खड़ा किया, बल्कि यह भी साबित कर दिया कि मुनीर की फौज अब सिर्फ कागज़ों में बहादुर रह गई है।
क्या हुआ मस्तुंग में?
बलूचिस्तान के मस्तुंग जिले में स्थित कर्देगाप तहसील के नादरा कार्यालय और अन्य सरकारी संस्थानों पर आतंकियों ने एक साथ हमला बोला। गोलियों की तड़तड़ाहट और बम धमाकों के बीच 18 सुरक्षाकर्मी, जो कि लेवी फोर्स के सदस्य थे, अपने हथियार जमीन पर फेंककर मौके से भाग गए।
ये वही फोर्स है जिसे पाकिस्तान सरकार “संवेदनशील क्षेत्रों की सुरक्षा के लिए सबसे उपयुक्त” बताती रही है। लेकिन हकीकत ये है कि जब सामने आतंकी खड़े हों, तो पाकिस्तान की ये विशेष बलें पहले गोली नहीं, पहले सरेंडर करती हैं।
आतंकियों ने उड़ाया पाकिस्तान का मजाक
हमले के बाद आतंकियों ने सोशल मीडिया पर जब्त किए गए हथियार, वायरलेस सेट और बुलेटप्रूफ जैकेट्स की तस्वीरें अपलोड कर दीं। तस्वीरें वायरल हुईं और दुनिया ने देख लिया कि कैसे पाकिस्तान की फौज, जिसे लाखों डॉलर की सहायता मिलती है, आतंकियों के सामने ‘बिना लड़े’ हथियार डाल देती है।
सरकार की प्रतिक्रिया: जब शर्मिंदगी दब नहीं सकी
शुरुआत में पाकिस्तानी प्रशासन ने इस घटना को दबाने की कोशिश की। लेकिन जब सोशल मीडिया पर आलोचना तेज हुई, तब डिप्टी कमिश्नर मस्तुंग ने लेवी फोर्स अनुशासन नियम 2015 के तहत 18 जवानों को बिना किसी माफी के सेवा से बर्खास्त कर दिया।
सरकारी आदेश में लिखा गया:
“इन जवानों की लापरवाही के कारण न केवल सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचा, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा को गहरा धक्का लगा। अगर ये जवान अपने कर्तव्यों पर डटे रहते, तो आतंकियों को इतनी आसानी से संसाधन नहीं मिलते।”
पाकिस्तान की गिरती सैन्य साख: क्या अब कोई भरोसा करेगा?
बलूचिस्तान, जहां पहले से ही अलगाववादी और आतंकी गतिविधियां चरम पर हैं, वहां की फौज खुद ‘भागती’ नजर आ रही है। सवाल उठता है:
- जब हथियारबंद जवान ही पीठ दिखा दें, तो आम जनता की रक्षा कौन करेगा?
- क्या पाकिस्तान की सेना अब सिर्फ प्रेस कॉन्फ्रेंस और पोस्टर में ही “शेर” है?
कुछ कड़वे तथ्य जो पाकिस्तान को झकझोरने चाहिए:
- पाकिस्तान की सेना दुनिया की छठी सबसे बड़ी सेना है, फिर भी आतंकी हमलों में बार-बार बेबस नजर आती है।
- बलूचिस्तान में 2024-2025 के बीच 70+ आतंकी हमले हो चुके हैं, जिनमें सुरक्षा बलों को भारी नुकसान हुआ।
- पाकिस्तान अपने बजट का बड़ा हिस्सा रक्षा क्षेत्र पर खर्च करता है, लेकिन ज़मीनी हालात हर बार कुछ और ही बयां करते हैं।
- पिछले दो वर्षों में दर्जनों सुरक्षाकर्मी आतंकियों के सामने आत्मसमर्पण कर चुके हैं — और वो भी बिना लड़े!
क्या पाकिस्तान अपनी सेना पर भरोसा कर भी सकता है?
मस्तुंग में हुआ यह ‘नो-गन जोन सरेंडर कांड’ एक चेतावनी है — पाकिस्तान के लिए, और दुनिया के लिए भी। जब आतंकी खुलेआम सरकारी इमारतों पर हमला कर सकते हैं और सुरक्षा बल उनका मुकाबला करने की बजाय भाग जाते हैं, तो वहां की सुरक्षा संरचना पर अब और भरोसा कैसे किया जाए?
इस घटना ने न केवल पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय छवि को नुकसान पहुंचाया, बल्कि आतंकी संगठनों का मनोबल भी बढ़ाया है। अब यह देखना बाकी है कि क्या पाकिस्तान इस शर्मिंदगी से कुछ सीखता है — या अगली बार फिर बंदूकें ज़मीन पर होंगी और जवान भागते दिखेंगे?