पिछले कुछ दिनों से तनाव के साए में जी रहे जम्मू-कश्मीर के सीमावर्ती क्षेत्रों में अब उम्मीद की नई किरण नजर आ रही है। भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया तनाव में कमी आने के साथ ही, आज यानी 15 मई से कई स्कूलों के दरवाज़े एक बार फिर छात्रों के लिए खुल गए हैं। यह फैसला राज्य के शिक्षा निदेशालय द्वारा लिया गया है, जो बच्चों की पढ़ाई और सुरक्षा दोनों को ध्यान में रखते हुए किया गया।
जिन क्षेत्रों में स्कूल फिर से खुले
शांति की बहाली के साथ स्कूलों का खुलना स्थानीय लोगों के लिए राहत की सांस जैसा है। जम्मू, सांबा, कठुआ, राजौरी और पुंछ जिलों के कई जोन में अब स्कूल पुनः संचालित हो रहे हैं। इनमें शामिल हैं:
- जम्मू ज़िला: चौकी चौरा, भलवाल, डंसाल, गांधी नगर सहित अन्य जोन।
- सांबा ज़िला: विजयपुर ज़ोन।
- कठुआ ज़िला: बरनोटी, लखनपुर, सल्लन और घगवाल ज़ोन।
- राजौरी ज़िला: पीरी, कलाकोट, थानामंडी, कोटरंका, खवास, लोअर हथल, और दरहाल क्षेत्र।
- पुंछ ज़िला: सुरनकोट और बफलियाज़ क्षेत्र।
इसके साथ ही उधमपुर, बानी, बसोली, महनपुर, भडdu, मल्हार और बिलावर क्षेत्रों में भी शैक्षणिक गतिविधियाँ फिर से शुरू हो गई हैं।
तनाव से शिक्षा तक: हालात कैसे बदले
भारत द्वारा हाल ही में की गई आतंकवादी ठिकानों पर सटीक कार्रवाई — जिसे ऑपरेशन सिंदूर के नाम से जाना गया — ने एक बड़ा संदेश दिया। यह कार्रवाई पहलगाम हमले के जवाब में की गई थी, जिसमें 26 निर्दोष लोग मारे गए थे। इसके बाद भारतीय सेना ने न केवल आतंकवादी शिविरों को नष्ट किया, बल्कि पाकिस्तान की आक्रामकता का भी प्रभावी जवाब दिया।
हालांकि, इसके तुरंत बाद दोनों देशों के डीजीएमओ (डायरेक्टर जनरल मिलिट्री ऑपरेशंस) के बीच हुई बातचीत के बाद गोलीबारी और सैन्य कार्रवाइयों को रोकने पर सहमति बनी। यही समझौता अब शांति बहाली की दिशा में एक बड़ा कदम साबित हो रहा है।
स्कूल खुलने का असर: बच्चे और अभिभावक दोनों खुश
उधमपुर से आई सुबह की तस्वीरें इस बदलाव की साक्षी हैं, जहाँ बच्चे अपनी स्कूल यूनिफॉर्म में मुस्कराते हुए स्कूल जाते दिखे। कुछ दिनों की भय और अनिश्चितता के बाद अब कक्षाएं फिर से शुरू हो गई हैं और किताबों की दुनिया में लौटे छात्र भी संतोष महसूस कर रहे हैं।
बच्चों की शिक्षा में आए इस व्यवधान से चिंतित अभिभावकों के लिए भी यह एक सुखद समाचार है। माता-पिता का कहना है कि वे सरकार के इस निर्णय से संतुष्ट हैं और चाहते हैं कि यह शांति स्थायी हो।
सरकार की भूमिका और आमजन की उम्मीदें
शिक्षा विभाग का यह निर्णय न केवल प्रशासन की सक्रियता को दर्शाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि सरकार बच्चों की शिक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देती है। ऐसे संवेदनशील क्षेत्रों में, जहाँ एक गोली की आवाज़ सैकड़ों सपनों को रोक सकती है, स्कूलों का दोबारा खुलना वास्तव में एक नई शुरुआत की तरह है।
अब जब सीमाओं पर शांति की कोशिशें रंग ला रही हैं, लोगों को उम्मीद है कि यह स्थायी बन सकेगी। आखिरकार, बच्चे जब कक्षाओं में लौटते हैं, तो एक राष्ट्र का भविष्य भी पटरी पर लौटता है।
निष्कर्ष
सीमाओं पर जब गोलियां नहीं चलतीं, तो कलम चलती है। और जब स्कूल खुलते हैं, तो समाज में विश्वास फिर से पनपता है। जम्मू-कश्मीर के सीमावर्ती इलाकों में स्कूलों का दोबारा खुलना केवल एक प्रशासनिक निर्णय नहीं, बल्कि यह उस विश्वास का प्रतीक है जो हर नागरिक, हर माता-पिता और हर बच्चे के दिल में पल रहा है—कि आने वाला कल बेहतर होगा, और शिक्षा का सूरज फिर से बिना बाधा के चमकेगा।