मतदाता की गोपनीयता सर्वोपरि
चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि मतदान केंद्रों की सीसीटीवी फुटेज या वेबकास्ट सामग्री सार्वजनिक करना मतदाताओं की गोपनीयता का उल्लंघन होगा। आयोग का मानना है कि इससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर भी असर पड़ सकता है।
पारदर्शिता बनाम कानूनी और नैतिक चिंताएं
हालांकि विपक्षी दल पारदर्शिता की मांग कर रहे हैं, लेकिन आयोग का कहना है कि फुटेज सार्वजनिक करना पारदर्शिता नहीं, बल्कि गोपनीयता और सुरक्षा का उल्लंघन है। यह जानना आसान हो जाएगा कि किसने मतदान किया और किसने नहीं, जिससे मतदाताओं पर दबाव बनाया जा सकता है।
दुरुपयोग और गलत सूचना की आशंका
चुनाव आयोग ने चेतावनी दी कि यदि फुटेज सार्वजनिक की गई तो उसका राजनीतिक दलों द्वारा दुरुपयोग हो सकता है। जैसे—किसी क्षेत्र में कम वोट मिलने पर दल यह पता लगाने की कोशिश कर सकते हैं कि किसने उन्हें वोट नहीं दिया।
सीसीटीवी फुटेज: निगरानी के लिए, न कि सार्वजनिक रिकॉर्ड
चुनाव आयोग ने साफ किया कि सीसीटीवी और वेबकास्ट सिर्फ आंतरिक निगरानी के लिए होते हैं, न कि जनता के लिए। ये चुनाव की पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए रिकॉर्ड किए जाते हैं, लेकिन इनका सार्वजनिक उपयोग कानूनी नहीं है।
45 दिनों के भीतर नष्ट होगा डेटा
आयोग ने राज्यों को निर्देश दिया है कि सीसीटीवी और वेबकास्ट रिकॉर्डिंग को 45 दिन के भीतर नष्ट कर दिया जाए, अगर कोई चुनाव याचिका दायर नहीं की गई हो। यह नियम दुरुपयोग और भ्रामक प्रचार से बचने के लिए लागू किया गया है।

नया नियम: नियम 93 में संशोधन
दिसंबर 2023 में चुनाव संचालन नियम, 1961 के नियम 93 में संशोधन किया गया। इसके तहत वेबकास्ट, सीसीटीवी और उम्मीदवारों से संबंधित वीडियो तक जनता की पहुंच सीमित की गई है, जिससे भ्रामक और दुर्भावनापूर्ण उपयोग रोका जा सके।
सोशल मीडिया पर छेड़छाड़ की घटनाओं से सबक
आयोग ने बताया कि सोशल मीडिया पर फुटेज के साथ छेड़छाड़ कर भ्रामक प्रचार किए जाने के कई उदाहरण सामने आए हैं। इन्हीं कारणों से नीतियों की समीक्षा कर सख्त निर्देश जारी किए गए हैं।
संवैधानिक जिम्मेदारी: गोपनीयता से कोई समझौता नहीं
चुनाव आयोग ने दोहराया कि मतदाता की गोपनीयता संविधान और सुप्रीम कोर्ट द्वारा संरक्षित है। उन्होंने साफ किया कि इस सिद्धांत पर आयोग कभी समझौता नहीं करेगा।