केंद्र सरकार ने छात्रों की कोचिंग सेंटरों पर बढ़ती निर्भरता की जांच के लिए एक 9 सदस्यीय समिति का गठन किया है। यह समिति सिर्फ कारणों की जांच ही नहीं करेगी, बल्कि छात्रों की इस निर्भरता को कम करने के उपाय भी सुझाएगी।
समिति क्यों बनाई गई?
हाल के वर्षों में इंजीनियरिंग, मेडिकल और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए कोचिंग सेंटरों पर छात्र पूरी तरह से निर्भर हो गए हैं।
- छात्र स्कूल की पढ़ाई को छोड़कर सीधे कोचिंग संस्थानों पर फोकस कर रहे हैं।
- रटने की प्रवृत्ति बढ़ रही है, जबकि आलोचनात्मक सोच, तार्किक समझ और नवाचार कमजोर होते जा रहे हैं।
इन्हीं समस्याओं की गंभीरता को देखते हुए शिक्षा मंत्रालय ने इस समिति का गठन किया है।
समिति में कौन-कौन शामिल है?
- अध्यक्ष: विनीत जोशी (उच्च शिक्षा सचिव)
- सीबीएसई अध्यक्ष
- शिक्षा मंत्रालय के संयुक्त सचिव (स्कूल व उच्च शिक्षा विभाग)
- IIT मद्रास, NIT त्रिची, IIT कानपुर और NCERT के प्रतिनिधि
- तीन स्कूलों के प्रधानाचार्य (केन्द्रीय विद्यालय, नवोदय विद्यालय और एक निजी स्कूल से)

क्या होते हैं डमी स्कूल?
डमी स्कूल वे होते हैं जहां छात्र सिर्फ नामांकित होते हैं, पढ़ाई नहीं करते। उनका फोकस सिर्फ कोचिंग और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी पर होता है।
- छात्र कक्षाओं में उपस्थित नहीं होते, सिर्फ बोर्ड परीक्षा देने के लिए रजिस्टर होते हैं।
- कई छात्र राज्य के आरक्षण का लाभ लेने के लिए भी डमी स्कूलों में दाखिला लेते हैं।
- उदाहरण: दिल्ली के डमी स्कूल में दाखिला लेकर छात्र दिल्ली के मेडिकल कॉलेजों में राज्य कोटे के लिए पात्र हो जाते हैं।
डमी स्कूलों की भी होगी जांच
समिति यह भी जांच करेगी कि:
- डमी स्कूल कैसे तेजी से बढ़ रहे हैं?
- क्या ये स्कूल औपचारिक शिक्षा की कीमत पर फुल-टाइम कोचिंग को बढ़ावा दे रहे हैं?
- इन स्कूलों के कारण स्कूल सिस्टम को क्या नुकसान हो रहा है?
समिति क्या करेगी?
- मौजूदा स्कूल शिक्षा व्यवस्था की खामियां खोजेगी।
- कोचिंग पर निर्भरता कम करने के उपाय बताएगी।
- प्रतियोगी परीक्षाओं की प्रभावशीलता और निष्पक्षता का भी मूल्यांकन करेगी।
- कोचिंग उद्योग के बेतहाशा बढ़ते प्रभाव का अध्ययन करेगी।