AI के कारण नहीं चाहेंगे लोग बच्चे पैदा करना
ओक्लाहोमा स्टेट यूनिवर्सिटी में कंप्यूटर साइंस के प्रोफेसर सुभाष काक का कहना है कि ये गिरावट किसी युद्ध या महामारी से नहीं, बल्कि AI टेक्नोलॉजी के कारण होगी। उन्होंने बताया कि जैसे-जैसे AI इंसानों की नौकरियां छीन लेगा, वैसे-वैसे लोगों का भविष्य को लेकर विश्वास कम होता जाएगा।
लोग सोचेंगे कि जब बच्चे बड़े होकर बेरोजगार ही रहेंगे, तो उन्हें पैदा करने का क्या मतलब? यही सोच धीरे-धीरे जन्म दर को कम कर देगी और अंततः पूरी दुनिया की आबादी में तेज गिरावट आएगी।
“AI से समाज में आएगी भारी उथल-पुथल”
न्यू यॉर्क पोस्ट को दिए इंटरव्यू में सुभाष काक ने कहा,
“यह पूरी मानव सभ्यता के लिए एक विनाशकारी बदलाव होगा। लोग अभी इसकी गंभीरता को समझ नहीं पा रहे हैं।”
उन्होंने कहा कि भले ही रोबोट्स पूरी तरह इंसानों जैसे न हों, लेकिन वे हमारे ज्यादातर काम खुद ही करने लगेंगे।
इंसानों की जगह लेंगे रोबोट, तो कहां जाएंगे हम?
AI जिस तेजी से आगे बढ़ रहा है, उससे कई क्षेत्रों में मानव श्रम की आवश्यकता कम होती जा रही है। उदाहरण के लिए:
- कारखानों में अब रोबोट काम कर रहे हैं
- कॉल सेंटर में AI चैटबॉट्स इंसानों की जगह ले रहे हैं
- स्कूलों और दफ्तरों में भी AI आधारित टूल्स इस्तेमाल हो रहे हैं
अगर यही रफ्तार रही तो आने वाले दशकों में लोगों को खुद को काम के लायक साबित करना मुश्किल हो जाएगा।
“बच्चों के भविष्य से डरेंगे लोग”
एक्सपर्ट काक का कहना है कि लोग सोचेंगे कि जब AI सब कुछ कर रहा है और इंसानों के लिए मौके कम होते जा रहे हैं, तो बच्चों के जीवन में संघर्ष ही संघर्ष रहेगा। इसी सोच के कारण जन्म दर में गिरावट होगी।
नतीजा?
साल 2300 या 2380 तक धरती पर आबादी घटकर सिर्फ 10 करोड़ रह जाएगी। ये संख्या आज के ब्रिटेन की आबादी के बराबर है!
भारत पर भी पड़ेगा असर
इस वक्त भारत दुनिया का सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश है, लेकिन अगर AI की वजह से जन्म दर कम होती है, तो यहां भी गिरावट दिखेगी।
अभी भले ही हम जनसंख्या नियंत्रण पर चर्चा कर रहे हों, लेकिन भविष्य में स्थिति इससे उलट हो सकती है — जहां लोग जनसंख्या बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किए जाएंगे।
टेक्नोलॉजी वरदान या अभिशाप?
AI इंसानी ज़िंदगी को आसान बना सकता है, लेकिन अगर इसका सही इस्तेमाल न किया गया, तो यह सामाजिक और जनसांख्यिकीय संकट पैदा कर सकता है।
अब वक्त आ गया है कि हम AI को सिर्फ “स्मार्ट टूल” न मानें, बल्कि इसके सामाजिक असर पर भी गंभीरता से सोचें।