उत्तर प्रदेश के अमेठी ज़िले से एक ऐसा मामला सामने आया है जिसने स्वास्थ्य व्यवस्था पर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं। जिले में कई ऐसे क्लीनिक चल रहे हैं, जिन्हें वो लोग चला रहे हैं जो न तो डॉक्टर हैं, न ही उनके पास किसी तरह की मेडिकल डिग्री है। हैरानी की बात यह है कि इनमें से कुछ क्लीनिक संचालक तो महज़ 12वीं पास हैं — और कुछ 12वीं भी नहीं।
स्वास्थ्य विभाग की एक ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, अमेठी ज़िले में करीब 12 ऐसे क्लीनिक सक्रिय हैं जो अवैध रूप से चल रहे हैं और जहां इलाज के नाम पर मरीजों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ किया जा रहा है। इन क्लीनिकों में न तो प्रशिक्षित स्टाफ है, न ही कोई लाइसेंस। फिर भी यहां बुखार से लेकर गंभीर बीमारियों तक का इलाज किया जा रहा है।
बिना डिग्री, बिना डर — इलाज जारी
ये क्लीनिक अमूमन छोटे गाँवों या कस्बों में स्थित हैं, जहाँ सरकारी स्वास्थ्य सुविधाएँ सीमित हैं। लोगों के पास विकल्प की कमी है, और इसी का फायदा ये फर्जी डॉक्टर उठा रहे हैं। अक्सर ये लोग खुद को “झोला छाप डॉक्टर” कहते हैं और मामूली फीस लेकर दवाइयाँ भी खुद ही दे देते हैं।
कुछ मामलों में तो ये लोग पुराने डॉक्टरों या कम्पाउंडरों के साथ कुछ समय काम कर चुके होते हैं और उसी अनुभव के आधार पर खुद का क्लीनिक खोल लेते हैं।
मरीजों की मजबूरी या सिस्टम की नाकामी ?
स्थानीय लोगों से बात करने पर पता चला कि उनके पास निजी अस्पतालों में इलाज करवाने की आर्थिक क्षमता नहीं है और सरकारी अस्पतालों तक पहुँचना आसान नहीं। ऐसे में जब कोई सस्ता इलाज पास में मिल जाए, तो लोग जोखिम उठाकर भी वहीं चले जाते हैं।
लेकिन कई बार यह ‘सस्ता इलाज’ महँगा पड़ जाता है। गलत दवा, गलत इंजेक्शन या लापरवाही से कई मरीजों की हालत और बिगड़ जाती है। कुछ मामलों में तो जान भी चली जाती है, मगर इसकी रिपोर्टिंग बहुत कम होती है।
प्रशासन की नींद खुली?
हाल ही में स्वास्थ्य विभाग की टीम ने औचक निरीक्षण किया और पाया कि 12 क्लीनिक बिना किसी अनुमति और योग्यता के चल रहे हैं। प्रशासन ने सभी के खिलाफ कार्यवाही की बात कही है, मगर अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है।
स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि जल्द ही इन क्लीनिकों को सील किया जाएगा और दोषियों पर कानूनी कार्रवाई होगी। लेकिन सवाल ये है कि जब ये क्लीनिक वर्षों से चल रहे हैं, तो अब तक किसी ने ध्यान क्यों नहीं दिया?
समाधान क्या है?
ग्रामीण इलाकों में प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव ही ऐसी परिस्थितियों को जन्म देता है। यदि सरकार समय पर उचित डॉक्टर और चिकित्सा सेवाएँ उपलब्ध कराए, तो इन फर्जी क्लीनिकों की ज़रूरत ही न पड़े।
साथ ही जनता को भी जागरूक करना ज़रूरी है कि इलाज सिर्फ लाइसेंस प्राप्त डॉक्टर से ही करवाएं। एक छोटी सी लापरवाही ज़िंदगीभर की परेशानी बन सकती है
निष्कर्ष:
अमेठी में 12वीं फेल लोगों द्वारा क्लीनिक चलाना केवल एक स्थानीय समस्या नहीं, बल्कि पूरे स्वास्थ्य तंत्र की कमजोरी को उजागर करता है। यह घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है — क्या सस्ता इलाज वाकई सुरक्षित है