ट्रैकोमा क्या है?
ट्रैकोमा एक संक्रामक नेत्र रोग है जो Chlamydia trachomatis नामक बैक्टीरिया से होता है। यह आमतौर पर आंखों की पलक के अंदरूनी हिस्से को संक्रमित करता है और बार-बार संक्रमण की स्थिति में पलकों की दिशा उल्टी हो सकती है, जिससे पलकों की बरौनियां आंखों की सतह को नुकसान पहुंचाने लगती हैं। समय पर इलाज न होने पर यह बीमारी अंधापन का कारण भी बन सकती है।
यह रोग गंदगी, साफ-सफाई की कमी और दूषित हाथों या कपड़ों के संपर्क से फैलता है। आमतौर पर यह बीमारी गरीब और पिछड़े इलाकों में अधिक देखी जाती है, जहां स्वच्छता और स्वास्थ्य सुविधाएं सीमित होती हैं।
भारत की लड़ाई: अंधकार से रोशनी की ओर
भारत में एक समय था जब ट्रैकोमा काफी आम था, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में। बच्चों और महिलाओं में इसका असर सबसे अधिक देखा जाता था। भारत सरकार ने इस बीमारी को जड़ से खत्म करने के लिए कई वर्षों से अभियान चलाए। स्वच्छता अभियान, नेत्र जांच कार्यक्रम, जन-जागरूकता, और प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं के मजबूत नेटवर्क के जरिए इस बीमारी पर काबू पाया गया।
सरकार ने ट्रैकोमा को न केवल इलाज योग्य माना, बल्कि इसके कारणों—जैसे गंदगी, दूषित जल और जानकारी की कमी—को भी खत्म करने की दिशा में काम किया। नतीजा यह हुआ कि अब भारत उन गिने-चुने देशों में शामिल हो गया है जिन्हें ट्रैकोमा फ्री घोषित किया गया है।
प्रधानमंत्री मोदी ने क्या कहा?
पीएम मोदी ने इस उपलब्धि को साझा करते हुए कहा:
“WHO ने भारत को ट्रैकोमा फ्री घोषित कर दिया है। अब भारत ट्रैकोमा मुक्त देश बन चुका है। ये उन लाखों लोगों की मेहनत का फल है, जिन्होंने बिना थके, बिना रुके, इस बीमारी से लड़ाई लड़ी। ये सफलता हमारे हेल्थ वर्कर्स की है।”
उन्होंने इसे “नई पीढ़ी की आंखों में उजाला भरने वाली उपलब्धि” बताया और देशवासियों से स्वच्छता व स्वास्थ्य के प्रति सजग रहने की अपील भी की।
निष्कर्ष
भारत का ट्रैकोमा मुक्त होना केवल एक स्वास्थ्य उपलब्धि नहीं, बल्कि यह देश के बदलते सोच और मजबूत जनभागीदारी का प्रतीक है। यह सिद्ध करता है कि जब सरकार, स्वास्थ्यकर्मी और आम जनता मिलकर किसी समस्या से लड़ते हैं, तो सफलता निश्चित होती है।