नेस्ले (अमेरिका) ने कहा है कि वो अपने खाने और पीने के सामान से नकली यानी सिंथेटिक रंग पूरी तरह हटाएगी। कंपनी ने बताया कि ये काम वो साल 2026 तक पूरा कर लेगी।
कंपनी ने क्यों लिया ये फैसला ?

नेस्ले का कहना है कि वो अपने प्रोडक्ट्स को ज्यादा सेहतमंद और नेचुरल बनाने के लिए ऐसा कर रही है। कंपनी पिछले 10 साल से अपने खाने-पीने की चीजों से सिंथेटिक रंग हटाने का काम कर रही है। साथ ही, खाने के नए और बेहतर विकल्प भी खोज रही है।
नेस्ले यूएसए के सीईओ मार्टी थॉम्पसन ने कहा कि कंपनी अपने ग्राहकों की पसंद के मुताबिक खुद को बदलना चाहती है। चाहे वो घर का खाना हो, स्नैक्स हो या कॉफी, कंपनी हर चीज को हेल्दी और बेहतर बनाने पर काम कर रही है।
भारत में क्या होगा ?

अब सवाल ये है कि क्या नेस्ले भारत में भी ऐसा बदलाव करेगी ? क्योंकि भारत में भी मैगी, नेस्कैफे, चॉकलेट, केचप जैसी कई चीजें खूब बिकती हैं। हालांकि, अभी तक कंपनी ने भारत के लिए ऐसा कोई एलान नहीं किया है।
क्यों मिलाए जाते हैं खाने में रंग ?

अक्सर कंपनियां खाने में रंग इसलिए डालती हैं क्योंकि बिना रंग वाला खाना देखने में उतना अच्छा नहीं लगता। रंग से खाने का स्वाद भी थोड़ा बेहतर लगता है।
खाने में दो तरह के रंग डाले जाते हैं —
- प्राकृतिक (नेचुरल) : ये पौधों, फलों और सब्जियों से बनते हैं।
- सिंथेटिक (नकली) : ये केमिकल से बनाए जाते हैं और सस्ते होते हैं। इन्हीं की वजह से सेहत को नुकसान हो सकता है।
इनमें कुछ रंग जैसे टार्ट्राजिन, सनसेट येलो, एल्युरा रेड आदि आमतौर पर फूड प्रोडक्ट्स में डाले जाते हैं।