MP News । मप्र के दो नामवर राजनीतिज्ञ। दोनों कभी दो अलग अलग विचारधारा की नाव पर खड़े थे। फिर एक किनारे भी साथ हुए। लेकिन विचारों का मिलान यहां भी मुश्किल ही रहा। बदलते समीकरण के बीच हालात यहां पहुंच गए हैं कि दोनों खुद को अपनों से ही ठगा महसूस कर रहे हैं। फर्क इतना है कि एक को बेवफाई का ईनाम पद, प्रतिष्ठा, पहचान के साथ मिला है। जबकि दूसरे को ईमानदारी का फल पद विमुख, गुमनामी और असमंजस भरे भविष्य के रूप में मिला है।
मामला प्रदेश के निवृत्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया से जुड़ा है। अब तक सिंधिया ही खुद को अपनी परंपरागत पार्टी कांग्रेस का उपेक्षित मानते रहे हैं। जबकि शिवराज सिंह चौहान इसी स्थिति से जूझने वाले नए पीड़ित बन गए हैं।
उपेक्षा का जवाब बगावत से दिया सिंधिया ने
2018 के चुनाव से पहले कांग्रेस ने अपने संभावित सीएम के नामों में ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम जोड़ा था। लेकिन जीत के बाद कमलनाथ न पीसीसी अध्यक्ष पद छोड़ने को राजी हुए और न ही सीएम बनने का मोह वह छोड़ पाए। नतीजा सिंधिया की बगावत के रूप में आया। प्रदेश में पहली बार तख्ता पलट के नजारे सामने आए। अपने डेढ़ दर्जन समर्थक विधायकों के साथ सिंधिया ने भाजपा का दामन थाम लिया और शिवराज सिंह चौहान के चौथी बार मुख्यमंत्री बनने का रास्ता खोल दिया था।
शिव के चेहरे पर जीत लेकर भाजपा ने चेहरा बदल दिया
प्रदेश में सबसे अधिक समय सीएम रहने का तमगा, योजनाओं के जरिए महिलाओं, युवाओं, किसानों, बुजुर्गों से रिश्तों की सियासत दम रखने वाले शिवराज सिंह चौहान ही अगले सीएम खुद शिवराज से ज्यादा प्रदेश की जनता को रहा है। प्रारंभिक सर्वे में लगातार शिकस्त की तरफ जा रही भाजपा को योजनाओं ने ही फायदा दिया और अपेक्षा से कहीं बड़ी जीत उसके हिस्से आई। जीत के बाद से शुरू हुई कूटनीति ने शिवराज को दरकिनार करते हुए पूरी तरह हाशिए पर डाल दिया। अब शिवराज न सीएम, न संगठन पदाधिकारी और न किसी बड़ी जिम्मेदारी के सार्थक। केंद्रीय नेतृत्व के इस फैसले को अचरज भरी आंखों से देख रहे प्रदेश को ये कतई बर्दाश्त नहीं हो पा रहा है कि उनको “शाहरुख खान की तस्वीर दिखाकर ब्याह अमरीश पुरी से कर दिया गया है।”
सिंधिया फार्मूला भी अपना सकते थे शिवराज
उपेक्षा से नाराज जिस तरह ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बगावत का रास्ता अपनाया था, वैसी राह शिवराज भी आसानी से पकड़ सकते थे। जीत का कारक बने भाजपा विधायकों में बड़ी तादाद शिवराज समर्थकों की है। लेकिन शिव ने सिंधिया राह की तरफ बढ़ने की बजाए पार्टी को मिशन करार दे दिया है। पार्टी जो कहेगी वही करूंगा, के बयान के साथ वे अपनी अगली भूमिका तय हुए बिना ही काम पर जुट गए हैं। न विद्रोह, न मांग, न फरमाइश और न गुहार के साथ दिल्ली दौड़।
अब कयासों का दौर
प्रदेश में सरकार का मुखिया बदल के बाद आमजन से लेकर सियासी हलकों में जितनी चर्चा नए सीएम डॉ मोहन यादव की नहीं, उससे ज्यादा बातें शिवराज सिंह चौहान को लेकर की जा रही हैं। शिव की खामोशी, शिव का आज्ञाकारी किरदार और जन के बीच उनके लिए अब भी पूर्ववत स्नेह लगातार इस और संकेत कर रहे हैं कि शिवराज का राज एक बार फिर कायम होगा। केंद्रीय नेतृत्व को अपने फैसले पर पुनर्विचार कर बदलाव से ये होगा या जनता की पुकार पर किसी नए समीकरण के साथ फिलहाल ये नहीं कहा जा सकता।