जबलपुर:
गरीबों के लिए भगवान समान माने जाने वाले पद्मश्री डॉ. एमसी डाबर का 4 जुलाई 2025 को निधन हो गया। वे 80 वर्ष के थे। डॉ. डाबर ने अपने जीवन के 51 साल गरीबों और ज़रूरतमंदों की सेवा में लगाए। वे सिर्फ 20 रुपये फीस लेकर मरीजों का इलाज करते थे।
उनकी मृत्यु से जबलपुर शहर ही नहीं, पूरा प्रदेश शोक में डूब गया है। लोग उन्हें ’20 रुपये वाले मसीहा डॉक्टर’ के नाम से जानते थे।
डॉ. डाबर का जीवन और सेवा यात्रा
- जन्म: 16 जनवरी 1946, पाकिस्तान (तत्कालीन पंजाब प्रांत)
- बचपन में पिता का निधन, लेकिन पढ़ाई नहीं रोकी
- MBBS की पढ़ाई जबलपुर मेडिकल कॉलेज से पूरी की (1967)
- 1971 भारत-पाक युद्ध में सेना में डॉक्टर के रूप में सेवा दी
- बाद में खराब स्वास्थ्य के चलते सेना छोड़ दी और जबलपुर लौट आए

2 रुपये से शुरू हुआ सेवा भाव, 20 रुपये तक पहुंचा
- 1972 में सिर्फ 2 रुपये में इलाज शुरू किया
- धीरे-धीरे फीस बढ़ी लेकिन कभी पैसा कमाना मकसद नहीं रहा
- आज भी 20 रुपये में इलाज, वही पुराना टेबल-कुर्सी, वही सादगी
हर दिन 200 मरीज, बिना थके, बिना रुके
- रोजाना 150 से 200 मरीज
- तीन-तीन पीढ़ियों ने उनके पास इलाज कराया
- जब खुद बीमार हुए तो लोग मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारों में उनके लिए दुआ करने लगे

सम्मान और पहचान
- भारत सरकार ने उन्हें 2023 में पद्मश्री से नवाज़ा
- 2019 में पद्मभूषण के लिए भी नॉमिनेशन हुआ
- डॉ. डाबर को जबलपुर का गौरव और चिकित्सा सेवा का प्रतीक माना जाता है
अंतिम विदाई और लोगों की श्रद्धांजलि
उनकी अंतिम यात्रा 4 जुलाई की शाम उनके निवास से गुप्तेश्वर मुक्तिधाम तक निकली।
लोगों ने नम आंखों से उन्हें अंतिम विदाई दी।
उनके एक पुराने मरीज ने कहा:
“हमारे लिए वे डॉक्टर नहीं, भगवान थे। 20 रुपये में इलाज आज के समय में चमत्कार जैसा था।”
डॉ. डाबर – सेवा, सादगी और इंसानियत की मिसाल
महंगी होती स्वास्थ्य सेवाओं के दौर में, डॉ. डाबर ने दिखाया कि डॉक्टर सिर्फ पेशा नहीं, सेवा का माध्यम भी हो सकता है।
उनका जीवन आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्तंभ रहेगा।