अनाम मिर्ज़ा का ‘डिजिटल ब्रेक’
फैशन और लाइफस्टाइल की दुनिया से जुड़ी अनाम मिर्ज़ा हमेशा अपने ट्रेंडिंग फैसलों को लेकर चर्चा में रहती हैं। इस बार उन्होंने सोशल मीडिया पर खुलासा किया कि उन्होंने अपना UPI (Unified Payments Interface) अकाउंट डिलीट कर दिया है ताकि वह अनावश्यक खर्चों से बच सकें। उनका मानना है कि डिजिटल पेमेंट की सुविधा जितनी आसान है, उतनी ही खतरनाक भी हो सकती है जब बात ‘बजट कंट्रोल’ की आती है।
क्यों डिलीट किया UPI?
अनाम ने बताया कि जब भी कोई छोटी-बड़ी चीज़ चाहिए होती थी, बस एक क्लिक में पेमेंट हो जाता था – बिना सोचे समझे। इसी आदत ने उनके मासिक बजट को बिगाड़ना शुरू कर दिया। इसलिए उन्होंने तय किया कि जब तक जरूरत न हो, UPI से थोड़ी दूरी ही बेहतर है।
क्या वाकई ये तरीका काम करता है?
विशेषज्ञों का मानना है कि डिजिटल पेमेंट की सहजता लोगों को अधिक खर्च करने की आदत में डाल देती है। एक रिसर्च के अनुसार, कैशलेस ट्रांजैक्शन करने वाले लोग कैश यूज़र्स की तुलना में अधिक खर्च करते हैं, क्योंकि उनके खर्च का एहसास कम होता है।
पैसे बचाने के लिए UPI हटाना – फायदे और नुकसान
फायदे:
इंस्टेंट खर्च से बचाव: सोच-समझकर खर्च करने की आदत बनती है।
बजट मेंटेन करना आसान: केवल जरूरी चीजों पर ही खर्च होता है।
इमोशनल शॉपिंग पर कंट्रोल: अचानक से शॉपिंग करने की प्रवृत्ति कम होती है।
नुकसान:
इमरजेंसी में दिक्कत: अचानक ज़रूरत पड़ने पर कैश या कार्ड पर निर्भर रहना पड़ता है।
अनावश्यक जटिलता: डिजिटल दुनिया में रहते हुए खुद को उससे काटना कई बार मुश्किल हो जाता है।
टाइम कंज्यूमिंग: हर बार कैश निकालना या कार्ड से पे करना थोड़ा समय ले सकता है।
बेहतर विकल्प क्या हो सकते हैं?
अगर UPI पूरी तरह हटाना मुश्किल हो, तो आप ये विकल्प अपना सकते हैं:
UPI लिमिट सेट करें: रोज़ या हफ्ते का बजट तय कर लें।
एक अलग अकाउंट बनाएं: खर्च के लिए सीमित फंड वाले खाते से UPI लिंक करें।
स्पेंड ट्रैकिंग ऐप्स यूज़ करें: जैसे Walnut, Money Manager आदि।
निष्कर्ष
अनाम मिर्ज़ा का यह कदम भले ही कुछ लोगों को कठोर लगे, लेकिन यह डिजिटल डिटॉक्स का एक अच्छा उदाहरण है। यदि आपको भी लगता है कि आप UPI से ज़रूरत से ज़्यादा खर्च कर रहे हैं, तो इस तरह के छोटे लेकिन असरदार फैसले आपके फाइनेंशियल डिसिप्लिन में बड़ा बदलाव ला सकते हैं।
कभी-कभी सबसे बेहतर सेविंग वही होती है, जब आप खर्च करने से पहले रुककर सोचते हैं – और अनाम मिर्ज़ा ने बिल्कुल यही किया है।