भोपाल। इस लोकसभा चुनाव में भाजपा द्वारा अपनाई जाने वाली
एक स्ट्रेटजी का अंदाजा तो बहुत आसानी से लगाया सकता है। ये स्ट्रेटजी है हारने वाले नेताओं का टिकट काटना। जिस सांसद की रिपोर्ट कमजोर है या वो अपने क्षेत्र में एक्टिव नहीं है, जिसके लोकसभा क्षेत्र के कार्यकर्ता उसने नाराज हैं और सबसे बड़ा फेक्टर जिस सांसद के खिलाफ एंटीइंकबेंसी तेज है, उसे भाजपा अब मौका नहीं देने वाली। इससे हटकर एक आजमाया हुआ फार्मूला भी इस चुनाव में दोहराया जा सकता है। ये फार्मूला है विधानसभा चुनाव में आजमाई गई एक रणनीति। इस रणनीति से बीजेपी ने विधानसभा चुनाव में बड़ा मैदान मार लिया। अब लोकसभा चुनाव में उसी रणनीति को दोबारा अप्लाई करने की तैयारी है। ये स्ट्रेटजी है धुरंधर बीजेपी ने उन सीटों पर भी फोकस करना शुरू कर दिया है,
जहां कांग्रेस का मत प्रतिशत भाजपा को मिले मतों के आसपास या उससे ज्यादा रहा है। इनमें से ही कुछ सीटों पर कांग्रेस को जीत भी मिली है।बीजेपी की इस रणनीति को इतना तो समझा ही जा सकता है लेकिन इस बार अपनी चाल में बीजेपी थोड़ा ट्विस्ट भी ला सकती है। हर बार हाथ घुमा कर कान पकड़ने वाली ये पार्टी इस बार उल्टे कान भी पकड़ सकती है। मतलब ये कि पार्टी उन नेताओं को भी टिकट दे सकती है, जो विधानसभा चुनाव में टिकट के दावेदार थे और पार्टी के बड़े नेता हैं या दमदार दिग्गज हैं। उनमें से कोई चेहरा ऐसा लगा, जिस पर दांव खेला जा सकता है तो बीजेपी उसे भी टिकट देने से बिलकुल गुरेज नहीं करेगी। बस लोकसभा के लिहाज से उनकी सर्वे रिपोर्ट भी एकदम बढ़िया होनी चाहिए।
मोहन मंत्रिमंडल में बहुत से नए चेहरे शामिल किए गए हैं। जबकि बहुत से ऐसे पुराने चेहरे हैं, जिन्हें अनुभव के बाद भी तरजीह नहीं दी गई। उन्हें बीजेपी भूल गई हो ऐसा नहीं है। उन्हें बीजेपी लोकसभा चुनाव में अपने एसेट की तरह यूज करेगी। हो सकता है मंत्रि पद से चूके मंत्रियों को अब लोकसभा चुनाव का टिकट दे दिया जाए और शर्त रख दी जाए कि फिर जीतो। यानी चुनाव तक न किसी को हौसला हारना है और न ही अपने काम में ढील बरतनी है।