नई दिल्ली 4/5/2018 अनुसूचित जाति\जनजाति संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. उदित राज ने कहा कि “दलित आदिवासियों की समस्या एवं वस्तुगत परिस्थिति को राजनितिक दृष्टि से देखा और परखा जा रहा है जबकि विषय इससे कहीं बड़ा और गंभीर है | उन्होंने देश के बुद्धजीवी सामाजिक एवं राजनैतिक लोगों की सोंच पर असंतोष व्यक्त किया है कि दलित का मर्ज़ कुछ और है और दवा कुछ और दी जा रही है | 2 अप्रैल 2018 के बाद से जिस तरह पूरे देशस्तर पर दलितों का रोष प्रकट हुआ उससे बात बिल्कुल साफ़ नजर आती है कि दलित और आदिवासियों की आकांक्षाएं एवं उम्मीदें कुछ और ही हैं, न कि उनको तथाकथित सवर्ण अपने पास बैठा ले या अपने पास भोजन करायें | बड़ा सवाल यह है कि 2 अप्रैल को दलित आदिवासी इतने आक्रोशित क्यों हुए ? उसके तुरंत बाद की दो बड़ी घटनायें हुई जिसकी वजह से इस परिस्थिति का निर्माण हुआ |
20 मार्च को सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
आया कि अनुसूचित जाति\जनजति अत्याचार निवारण अधिनियम 89 में गिरफ़्तारी तभी हो सकती है जब कर्मचारी के मामले में नियुक्तिकर्ता और जनता के मामले में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक लिखित रूप से देगा तभी मुकदमा दर्ज हो सकता है जब डीएसपी स्तर पर अधिकारी जांच से संतुष्ट हो एवं रिपोर्ट भी तभी दर्ज की जाएगी | इसके पहले सुप्रीम कोर्ट का एक और फैसला आया और उसमें कहा गया कि विश्वविद्यालय को इकाई न मान करके विभाग को आरक्षण लागू करने हेतु माना जायेगा | इससे शिक्षक भर्ती में लगभग आरक्षण का खात्मा हो चूका है | उदाहरण के तौर पर तमिलनाडु सेंट्रल यूनिवर्सिटी में 65 शिक्षक भर्ती हेतु जो विज्ञापन जारी किया गया था जिसमे मात्र 2 ओबीसी को स्थान दिया है जबकि 63 सामान्य वर्ग को भर्ती के लिए मिल रहा है | इस समय ज्यादातर विश्वविद्यालय और कॉलेज आनन-फानन मे हैं कि किस तरह से वर्षों से लंबित पदों को विज्ञापित करके जल्द से जल्द भर दिया जाये | उन्हें आशंका है कि कहीं फिर से पुरानी व्यस्था लागू न हो जाये | देश को समझना होगा कि इस मानसिकता से दलित असंतुष्ट है कि किस तरह से उन्हें न्यायपालिका, कार्यपालिका, शिक्षा एवं आर्थिक जगत में जब भी मौका लगता है अधिकार और सम्मान और प्रतिनिधित्व से वंचित करने का कोई मौका नहीं छोड़ा जाता है | जब इन वर्गों में इस बात का अहसास हो गया तो क्या इनके घर पर खाना खाकर या बराबर पर बैठा कर बहलाया या फुसलाया जा सकता है | अब हमे समझना होगा कि इनकी आकांक्षायें कछ और हो गयी हैं न कि 80 और 90 के दशक में थी |
डॉ. उदित राज ने आगे कहा कि यह एक अवसर है
कि देश को इस पृष्ठिभूमि में इनके विषय और विमर्श सोचना होगा | सरकार के द्वारा चलाया गया अभियान कि सांसद और विधायक दलित बाहुल्य गाँव में जाये और सरकारी योजनाओं से अवगत करायें, इसका स्वागत किया जाना चाहिए | कोई भी सामाजिक या राजनैतिक व्यक्ति किसी समाज के साथ भोजन या किसी अन्य तरह का मेलजोल करने के लिए आजाद है और इसका विरोध करने का कोई मतलब नही होता लेकिन क्या इससे अब इन वंचितों को बहलाया, फुसलाया जा सकता है ? जबकि इनमे चाहत कुछ और पैदा हो गयी है | केवल सरकार और राजनैतिक लोगों का ही ठेका नही रह गया है कि इस बड़े विषय पर चिंता करें | अब जो इनमे गुणात्मक परिवर्तन देखने को मिल रहा है उसकी वजह यह है कि उन्हें निजी क्षेत्र में आरक्षण दिया जाये | जिस तरह से ठेकेदारी और आउटसोर्सिंग की वजह से नौकरियां खत्म हुई है उस पर रोक लगे और फिर से विशेष भर्ती अभियान चालू किया जाये | एक भारत- श्रेष्ठ भारत बनाने का सपना पूरा करना है तो जाति व्यवस्था को ख़त्म करके रोटी-बेटी का सम्बन्ध चालू करना पड़ेगा | बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर ने पूरे जीवन जातिविहीन समाज की स्थापना के संघर्ष किया था तो क्या तथाकथित निम्न जातियों के लिए ही ऐसा कदापि नही | जाति एवं महिला और पुरुष को विभाजित करने वाला देश कभी विकसित हो सकेगा इस पर बहुत बड़ा संदेह है |
डॉ. उदित राज ने सरकार से अपील किया कि 2 अप्रैल के आन्दोलन में जिन दलितों के ऊपर मुक़दमे किये गए हैं उन्हें वापिस किया जाये | जब जाट और पटेल आन्दोलन के दौरान किये गए मुक़दमे वापिस हो सकते हैं तो दलितों के ऊपर किय्व गए मुक़दमे भी वापिस किया जा सकता है |