अभी तक किसान आंदोलन को लेकर सरकार और किसानो के बीच सहमति नहीं बन पाई है।
4 जनवरी को हुई बैठक से किसी भी तरह का परिणाम नहीं निकल सका। किसानो की माँग स्पष्ट है
कृषि क़ानून की वापसी और MSP पर प्रथक क़ानून। सरकार और किसानो के बीच हुई बैठक में अभी
तक 2 माँगो में सहमति व्यक्त की परंतु जिस तरह का दबाव सरकार पर बना हुआ है
उस से स्पष्ट हो रहा है की किसान आंदोलन समय के साथ उग्र रूप ले लेगा।
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दिल्ली में 50 हज़ार से ज़्यादा ट्रैक्टर के साथ किसान मार्च करने की तैयारी में ठीक ऐसा मार्च 26 जनवरी
को भी करने की धमकी सरकार को दी है अगर उनकी माँगो को अनदेखा किया तो राष्ट्रीय त्योहार
26 जनवरी में किसान आंदोलन अपना अलग दिल्ली मार्च निकालेगा। किसानो देश के सभी किसानो
से निवेदन किया है की सभी ज़्यादा से ज़्यादा संख्या में इस आंदोलन में शामिल होकर अपनी आवाज़ को सरकार के समक्ष बुलंद करें।
आज 43वाँ दिन किसान आंदोलन जिस तरह अपनी संख्या के साथ ताक़त प्रदर्शन कर रहा है स्पष्टतः
सरकार को अपना अटल रवैया छोड़ना पड़ सकता है।
एनआरसी के कारण हुए शाहीन बाग़ आंदोलन से किसान आंदोलन एकदम भिन्न है।
सरकार उस आंदोलन को मुस्लिम आंदोलन के रूप में देख रही थी और वहाँ सरकार का अटल
रवैया काम तो कर गया परंतु शाहीन बाग़ आंदोलन ने भी देशवासियों को संदेश दे दिया की अडिग
होकर शांतिप्रिय तरीक़े से सरकार पर आसानी से दबाव बनाया जा सकता है। किसान आंदोलन
ना तो धार्मिक है और ना ही विपक्ष द्वारा रची गई साज़िश का नतीजा यह स्पष्टतः किसानो
के अंदर भविष्य में पूँजीवादियों का ग़ुलाम बन ने का भय है।
यह आंदोलन तबसे ही जारी है जबसे इसका ज़िक्र सरकार द्वारा किया गया था।