नई दिल्ली – मतगणना से पहले विपक्ष को एकजुट रखने और राष्ट्रपति से मिलने की रणनीति सिरे चढ़ती नहीं दिख रही है।
टीएमसी प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने नतीजों से पहले विपक्षी दलों की बैठक को ना कह दिया है, वहीं बसपा प्रमुख मायावती और सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने फिलहाल इस पर कोई जवाब नहीं दिया है। आंध प्रदेश के सीएम और टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू इस बैठक के लिए विपक्षी दलों से संपर्क साधने में जुटे हैं। इस क्रम में उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, ममता सहित करीब डेढ़ दर्जन क्षेत्रीय दलों के नेताओं से संपर्क साधा है।
टीडीपी सूत्रों के मुताबिक बीते हफ्ते ममता ने नायडू के साथ मुलाकात में कहा कि चुनाव के नतीजे आए बिना इस तरह की बैठक में वह शिरकत नहीं करेंगी।
दूसरी ओर अखिलेश और मायावती ने भी बैठक को लेकर नायडू को कोई ठोस आश्वासन नहीं दिया। हालांकि एनसीपी, आरजेडी, डीएमके, जेडीएस सहित दर्जन भर क्षेत्रीय दल इसके लिए राजी हैं। कांग्रेस के नेतृत्व में प्रस्तावित इस बैठक में विपक्षी दलों के बीच एकजुटता बनाने और राष्ट्रपति से मिल कर किसी दल या गठबंधन को बहुमत न मिलने की स्थिति में बहुमत का परीक्षण किए बिना किसी को भी सरकार बनाने का निमंत्रण न देने का अनुरोध करने की रणनीति थी। इस क्रम में 21 या 22 मई को विपक्ष को एकजुट करने की रणनीति थी।
बैठक में एनडीए को रोकने की रणनीति
विपक्ष का मानना है कि इस बार किसी भी दल तो दूर किसी गठबंधन को बहुमत हासिल नहीं होगा। ऐसी स्थिति में सत्तारूढ़ एनडीए का नेतृत्व करने वाली भाजपा दूसरे दलों के नेताओं को साथ लाने की पहल करेगी। विपक्षी दल चाहते हैं कि नतीजे आने से पहले ही एनडीए को सत्ता में दोबारा आने से रोकने की रणनीति बना ली जाए, ताकि विपक्षी एकता में सेंध न लग पाए।
क्या है दिग्गज क्षत्रपों का मन?
दरअसल ममता, माया, अखिलेश जैसे नेता गैर कांग्रेस-गैर भाजपा सरकार के पक्ष में हैं। ऐसे में ये नेता नतीजा आने से पहले कांग्रेस की अगुवाई में होने वाली बैठक से दूर रहना चाहते हैं। ये नेता चाहते हैं कि पहले नतीजा आ जाए, उसके बाद संख्याबल के हिसाब से रणनीति बनाई जाए। दरअसल किसी को बहुमत न मिलने की स्थिति में ममता, माया, अखिलेश, के चंद्रशेखर राव, जगनमोहन रेड्डी, नवीन पटनायक जैसे नेताओं का रुख महत्वपूर्ण हो जाएगा।