क्या होता है ब्लैक बॉक्स?
ब्लैक बॉक्स दरअसल एक डिवाइस होती है जिसमें दो खास रिकॉर्डर होते हैं:
- कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर (CVR) — इसमें पायलट की आवाज़, इंजन की आवाज़ और रेडियो बातचीत रिकॉर्ड होती है।
- फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर (FDR) — इसमें विमान की ऊंचाई, रफ्तार, दिशा और टेक्निकल डेटा सेव रहता है।
ब्लैक बॉक्स का इतिहास
ब्लैक बॉक्स का आइडिया सबसे पहले 1953 में ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिक डेविड वारेन को आया। उन्होंने 1956 में इसका पहला मॉडल भी तैयार किया था।
ब्लैक क्यों कहते हैं, जबकि ये नारंगी होता है?
असल में ब्लैक बॉक्स काले रंग का नहीं बल्कि नारंगी रंग का होता है। ऐसा इसलिए ताकि दुर्घटना के बाद मलबे में उसे जल्दी ढूंढा जा सके।
‘ब्लैक बॉक्स’ नाम दरअसल कंप्यूटर और इलेक्ट्रॉनिक्स की भाषा से आया है।
कैसे बचाता है हादसे में
ब्लैक बॉक्स को इस तरह बनाया जाता है कि वो तेज़ टक्कर, आग और गहरे पानी के दबाव को भी सह सके। पानी में गिरने पर इसका बीकन सिग्नल भेजता है ताकि उसे ढूंढा जा सके।
100% भरोसेमंद नहीं
हालांकि ये बहुत काम का डिवाइस है, मगर हर बार इसमें पूरा डेटा सुरक्षित नहीं रह पाता। कई हादसों में आखिरी कुछ मिनटों की जानकारी गायब हो जाती है।
डीवीआर क्या है और क्यों ज़रूरी ?
डीवीआर (डिजिटल वीडियो रिकॉर्डर) प्लेन के अंदर सीसीटीवी कैमरों जैसा होता है। ये प्लेन के अंदर की और बाहर की वीडियो रिकॉर्डिंग करता है। हादसे के बाद इससे भी कई अहम सबूत मिलते हैं।