साउथ-वेस्ट दिल्ली स्थित खरखरी नाहर गांव में पराली को गलाने के लिए डी-कंपोजर घोल का निर्माण केंद्र बनाया गया है। दिल्ली सरकार, पूसा रिसर्च इंस्टीट्यूट की निगरानी में पराली के डंठल को खेत में गला कर खाद बनाने के लिए यहां एक विशेष घोल का निर्माण करा रही है। यहां एक साथ चार स्थानों पर यह घोल तैयार किया जा रहा है।
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा, दिल्ली सरकार इस घोल का छिड़काव करीब 700 हेक्टेयर जमीन पर अपने खर्चे पर करेगी और किसानों पर कोई आर्थिक बोझ नहीं पड़ेगा। हालांकि किसानों को अपने खेत में इस घोल के छिड़काव के लिए अपनी सहमति देनी होगी। अगले सात दिन के बाद यह घोल बनकर तैयार हो जाएगा और 11 अक्टूबर से दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में घोल का छिड़काव किया जाएगा। यह प्रयोग सफल होता है, तो अन्य राज्यों के किसानों को भी पराली का एक समाधान मिल जाएगा।
मुख्यमंत्री ने कहा, जो किसान गैर बासमती चावल उगाते हैं, उनके खेत में यह पराली के मोटे-मोटे डंठल बच जाते हैं। अभी तक किसानों के लिए सबसे बड़ी समस्या यह थी कि पराली से वो निजात कैसे पाएं। किसान उस पराली को जलाता था। पराली को जलाने की वजह से उस जमीन के अंदर फसल के लिए फायदेमंद बैक्टीरिया मर जाया करते थे और पराली के जलाने से निकलने वाले धुंआ से उस किसान और पूरे गांव के लोगों को प्रदूषण से परेशानी होती थी। साथ ही, वह धुंआ दिल्ली समेत उत्तर भारत में फैल जाता था, जिसके चलते सभी लोगों के स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता था। सभी लोग प्रदूषण से पीड़ित होते हैं।
केजरीवाल ने कहा, पूसा रिसर्च इंस्टीट्यूट ने कुछ कैप्सूल बनाए हैं। इस कैप्सूल के जरिए घोल बनाया जाता है। इस घोल को अगर खेतों में खड़े पराली के डंठल पर छिड़क दिया जाए, तो वह डंठल गल जाता है। वह गल करके खाद में बदल जाता है। डंठल से बनी खाद से उस जमीन की उर्वरक क्षमता में वृद्धि होती है, जिसके बाद किसान को अपने खेत में खाद कम देना पड़ता है। इस तकनीक के प्रयोग के बाद किसान को फसल उगाने में लागत कम लगेगी, किसान की फसल की पैदावार अधिक होगी।
दिल्ली का पूसा रिसर्च इंस्टीट्यूट पिछले तीन-चार साल से पराली की समस्या के समाधान को लेकर रिसर्च कर रहा था। दिल्ली में लगभग 700 हेक्टेयर जमीन है, जिस पर गैर बासमती धान की फसल उगाई जाती है। वहां पर पराली की समस्या है। दिल्ली सरकार पूरे 700 हेक्टेयर जमीन पर अपने खर्चे पर इस घोल का छिड़काव करेगी। इस पर किसानों पर कोई आर्थिक बोझ नहीं पड़ेगा। किसानों को सिर्फ अपने खेत में घोल के छिड़काव के लिए अपनी सहमति देनी होगी। किसान की सहमति के बाद दिल्ली सरकार घोल भी देगी और उसका छिड़काव भी करेगी।
दिल्ली सरकार ने मंगलवार से पूसा रिसर्च इंस्टीट्यूट की निगरानी में घोल बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। साउथ वेस्ट दिल्ली में स्थित खरखरी नाहर गांव में पराली गलाने के लिए डी-कंपोजर घोल निर्माण केंद्र स्थापित किया गया है। घोल तैयार करने की प्रक्रिया सात दिनों तक चलेगी। इसमें गुड़ और बेसन डाल कर चार दिनों तक रखा जाता है।
सात दिन के बाद यह घोल बन कर तैयार हो जाएगा और इसके बाद 11 अक्टूबर से दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में घोल का छिड़काव शुरू किया जाएगा। दिल्ली के लगभग 1200 किसानों ने इस तकनीक को अपने खेत में इस्तेमाल करने की इच्छा जताते हुए रजिस्ट्रेशन कराया है।
सीएम अरविंद केजरीवाल ने कहा, हमें पूरी उम्मीद है कि यह प्रयोग सफल होगा और अगर यह प्रयोग सफल होता है, तो आसपास के राज्यों के किसानों को भी पराली का एक समाधान देगा। यह इतना सस्ता है कि दिल्ली के अंदर 700 हेक्टेयर जमीन पर घोल बनाना, छिड़काव करना, इसका ट्रांसपोर्टेशन आदि मिलाकर इस पर केवल 20 लाख रुपए का खर्च आ रहा है। यदि यह प्रयोग सफल रहा, तो हम किसानों के खेत में घोल का छिड़काव हर साल करेंगे।
दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने कहा
दिल्ली के अंदर पराली का धुंआ बहुत कम पैदा होता है। दिल्ली के अंदर पराली बहुत कम मात्रा में जलाई जाती है, लेकिन पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर पराली जलाई जाती है और यह दिल्ली के प्रदूषण को करीब 45 प्रतिशत तक प्रभावित करती है।