अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को पिछले कुछ हफ्तों से पैर के निचले हिस्सों में सूजन महसूस हो रही थी। उन्होंने इसकी वजह जानने के लिए टेस्ट करवाए। टेस्ट में पता चला कि उन्हें क्रॉनिक वेनस इन्सफिशिएंसी। क्रॉनिक वेनस इन्सफिशिएंसी पैरों की नसों से जुड़ी एक बीमारी (Chronic Venous Insufficiency) है।
जब पैरों की नसें डैमेज होने लगती हैं और ठीक से काम नहीं करती तो इस समस्या को क्रॉनिक वेनस इन्सफिशिएंसी कहते हैं। पैरों की नसों में वॉल्व होते हैं, जो खून को दिल की ओर वापस जाने में मदद करते हैं। हालांकि, इस मेडिकल कंडीशन में ये वॉल्व खराब हो जाते हैं, जिसके कारण खून पैरों में जमा होने लगता है। इससे नसों में दबाव बढ़ता है और सूजन या घाव जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
आमतौर पर यह समस्या 50 साल से अधिक उम्र के लोगों को होती है। दुनिया में 10 से 35% एडल्ट्स को यह समस्या है। भारत में भी हर तीन में से एक वयस्क को क्रॉनिक वेनस इन्सफिशिएंसी है, जबकि 4-5% लोगों में इसके लक्षण गंभीर रूप से दिखते हैं। इनमें यह कंडीशन अल्सर का रूप ले चुकी है।
CVI शरीर को कैसे प्रभावित करती है?
CVI यानी क्रॉनिक वेनस इन्सफिशिएंसी में पैरों में ब्लड फ्लो धीमा हो जाता है और वह ठीक से दिल तक वापस नहीं जा पाता है। अगर इसका इलाज न हो तो पैरों की नसों में दबाव इतना बढ़ जाता है कि सबसे छोटी ब्लड वेसल्स यानी कैपिलरीज फटने लगती हैं। इसके कारण स्किन पर उस जगह का रंग लाल-भूरा होने लगता है और वो हिस्सा थोड़ी सी चोट या खुजलाने भर से भी फट सकता है।
कैपिलरीज फटने से कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं-
- उस हिस्से में सूजन हो सकती है।
- टिशू डैमेज यानी त्वचा के अंदरूनी हिस्से को नुकसान हो सकता है।
- वीनस स्टेसिस अल्सर, यानी त्वचा पर खुले घाव हो सकते हैं।
- ये अल्सर जल्दी नहीं भरते हैं और अगर ध्यान न दिया जाए तो उनमें इन्फेक्शन हो सकता है। यह संक्रमण आसपास की त्वचा में भी फैल सकता है, जिसे सेलुलाइटिस कहते हैं।
- अगर समय पर इलाज न हो तो यह कंडीशन खतरनाक बन सकती है।
क्रॉनिक वेनस इन्सफिशिएंसी के लक्षण क्या होते हैं?
CVI यानी पैरों की नसों में कमजोरी के कारण खून वापस दिल तक ठीक से नहीं पहुंच पाता, जिससे शरीर में कुछ खास लक्षण दिखाई देने लगते हैं। जैसे –
- पैरों में सूजन (सूजन खासकर टखनों के पास)
दिनभर खड़े रहने या चलने के बाद पैरों में सूजन आ जाती है, जो रात को ज्यादा महसूस होती है।
- भारीपन और थकान का एहसास
पैरों में भारीपन, कमजोरी और थकान महसूस होती है, जैसे चलने का मन न करे।
- वेरीकोज़ वेन्स (उभरी हुई नसें)
नसें नीली या बैंगनी रंग की, टेढ़ी-मेढ़ी और त्वचा के ऊपर उभरी हुई दिखने लगती हैं।
- पैरों में दर्द या ऐंठन
खासकर रात में या लंबे समय तक खड़े रहने पर पैरों में दर्द या मरोड़ जैसा दर्द होता है।
- त्वचा का रंग बदलना
टखनों या पिंडलियों के आसपास की त्वचा काली या गाढ़े भूरे रंग की हो जाती है।
- त्वचा में खुजली और जलन
प्रभावित हिस्सों में बार-बार खुजली होती है और जलन जैसा लगता है।
- त्वचा सख्त होना (Lipidodermatosclerosis)
लंबे समय तक रोग रहने पर त्वचा सख्त, मोटी और चमड़े जैसी हो जाती है।
- घाव या अल्सर बनना
टखनों के पास लंबे समय तक न भरने वाले जख्म या घाव बन जाते हैं।
- रात में बेचैनी या पैरों को बार-बार हिलाने की इच्छा
नींद के समय पैरों में अजीब सी बेचैनी होती है, जिसे “Restless Legs Syndrome” कहा जाता है।
रखें इस बात का ध्यान
जब किसी का वेनस डिसऑर्डर स्टेज 3 या उससे ऊपर है, तभी इसे क्रॉनिक वेनस इन्सफिशिएंसी (CVI) माना जाता है। अगर पैर की नसें उभर रही हैं और स्किन का रंग बदल रहा है तो सावधानी बरतने की जरूरत है।
क्रॉनिक वेनस इन्सफिशिएंसी से कैसे बच सकते हैं?
इसे पूरी तरह रोका नहीं जा सकता है, लेकिन लाइफस्टाइल में कुछ बदलाव करके आप इसका जोखिम कम कर सकते हैं।
- लेग एलिवेशन करें
अपने पैरों को कुछ देर तक हार्ट के लेवल से ऊपर उठाकर रखें। यह नसों में दबाव को कम करने में मदद करता है।
डॉक्टर दिन में कम से कम 3 बार 30 मिनट या उससे अधिक समय तक ऐसा करने की सलाह दे सकते हैं।
- एक्सरसाइज करें
वॉकिंग और दूसरी एक्सरसाइज से पैरों में ब्लड फ्लो बेहतर बना रहता हैं।
हर कदम पर आपकी पिंडली की मांसपेशियां सिकुड़ती हैं और खून को ऊपर दिल की तरफ धकेलती हैं।
इस मसल पंप को दूसरा दिल कहा जाता है। यह पैरों से ऊपर की ओर खून को चढ़ाने में मदद करता है और यह आपके ब्लड फ्लो के लिए बहुत जरूरी है।
- वेट मैनेज करें
अधिक वजन होने पर नसों पर दबाव पड़ता है और नसों के वॉल्व को डौमेज कर सकता है।
डॉक्टर से सलाह लें कि आपके लिए हेल्दी वजन क्या होना चाहिए और उसी हिसाब से अपनी लाइफस्टाइल बदलें।