जबलपुर।
मध्य प्रदेश की बिजली वितरण कंपनियां मेंटेनेंस के काम को लेकर गंभीर नहीं दिख रही हैं। करोड़ों रुपये मिलने के बावजूद भी बिजली व्यवस्था सुधारने की दिशा में न तो जरूरी कदम उठाए जा रहे हैं और न ही पूरी राशि खर्च की जा रही है। नतीजा – हल्की बारिश या तेज हवा से ही बिजली गुल हो रही है और आम उपभोक्ताओं को परेशानी झेलनी पड़ रही है।
आधा पैसा खर्च, आधा वापिस – उपभोक्ता रह गए परेशान
मध्य क्षेत्र (भोपाल) और पूर्व क्षेत्र (जबलपुर) की बिजली वितरण कंपनियों को 2023-24 में मेंटेनेंस के लिए सैकड़ों करोड़ रुपये मिले थे।
- पूर्व क्षेत्र को ₹289.64 करोड़ मिले, लेकिन खर्च हुए सिर्फ ₹192.10 करोड़।
- मध्य क्षेत्र ने भी सिर्फ लगभग 50% ही राशि खर्च की।
- वहीं पश्चिम क्षेत्र (इंदौर) ने पूरी राशि खर्च कर बाकी कंपनियों को पीछे छोड़ दिया।
हर साल दो बार मेंटेनेंस – फिर भी हाल खराब क्यों?
बिजली विभाग में दो तरह का मेंटेनेंस होता है:
- शेड्यूल मेंटेनेंस – साल में दो बार, मानसून से पहले और बाद में।
- अनशेड्यूल मेंटेनेंस – जब बारिश, आंधी या किसी तकनीकी गड़बड़ी की वजह से अचानक कोई खराबी आ जाए।
लेकिन कई बार तय मेंटेनेंस भी अधूरा छोड़ दिया जाता है, जिससे हल्की हवा या बारिश में भी बिजली ट्रिप होने लगती है।
उपभोक्ताओं को मिलनी थी बेहतर सेवा, लेकिन…
मप्र विद्युत नियामक आयोग ने यह राशि खासतौर पर बिजली लाइनों, उपकरणों की मरम्मत, सुरक्षा उपकरण और बेहतर सेवा के लिए दी थी। लेकिन जब कंपनियां ही पैसा खर्च नहीं करेंगी, तो उपभोक्ता राहत कैसे पाएंगे?
पूर्व अभियंता ने जताई नाराज़गी
मप्र पावर जनरेटिंग कंपनी के पूर्व मुख्य अभियंता राजेंद्र अग्रवाल ने बताया कि सिर्फ इंदौर रीजन (पश्चिम क्षेत्र) ने अपने क्षेत्र में सुधार किया है, क्योंकि उसने पूरी फंडिंग का उपयोग किया। बाकी क्षेत्रों ने लापरवाही बरती है और इसी वजह से वहां बिजली आपूर्ति में लगातार दिक्कतें आ रही हैं।
अब सवाल यह है…
जब सरकार मेंटेनेंस के लिए पर्याप्त पैसा दे रही है, तो क्या कंपनियों की लापरवाही पर कोई कार्रवाई होगी? क्या आयोग इनसे जवाब तलब करेगा? और सबसे जरूरी – क्या उपभोक्ताओं को अब बिजली कटौती से राहत मिलेगी?