अगर आप हॉरर फिल्मों के दीवाने हैं और कुछ ऐसा देखना चाहते हैं जो वाकई आपकी रूह तक को हिला दे, तो ‘1920: ईविल रिटर्न्स’ आज भी आपके लिए परफेक्ट चॉइस है। ये कोई आम डरावनी फिल्म नहीं है, बल्कि ऐसी कहानी है जो आपको धीरे-धीरे अंदर से डराती है।
13 साल बाद भी बरकरार है खौफ
2012 में रिलीज हुई यह फिल्म आज भी दर्शकों के दिमाग में उसी डर के साथ जिंदा है। फिल्म भले ही 1920 के दशक की कहानी दिखाती हो, लेकिन इसका सस्पेंस और हॉरर आज भी उतना ही ताजा महसूस होता है। फिल्म में एक कवि और एक रहस्यमयी लड़की की कहानी है, जिस पर एक भयानक आत्मा का साया मंडराता है।
डर जो सिर्फ ‘जंप स्केयर’ नहीं
इस फिल्म की सबसे खास बात है कि यह केवल अचानक डराने वाले सीन (Jump Scare) पर टिकी नहीं है, बल्कि इसका डर धीरे-धीरे आपके मन में घर कर जाता है। बैकग्राउंड म्यूजिक, पुरानी हवेली का माहौल, रहस्यमयी कैमरा एंगल और दमदार एक्टिंग – सब कुछ मिलकर आपको अंदर तक झकझोर देता है।
संस्कार भूलने की कीमत: सोनम जैसी संतानें!
ग्वालियर में आयोजित वीरांगना बलिदान मेला में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने समाज में संस्कारों के गिरते स्तर पर बड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा कि अगर परिवार में परंपराएं और संस्कार सिखाना बंद कर दिए गए, तो समाज में सोनम रघुवंशी जैसी संतानों का जन्म होगा। उन्होंने चेताया कि सती-सावित्री और माता अनुसुइया जैसे महान चरित्रों की कहानियां बच्चों तक जरूर पहुंचानी चाहिए, नहीं तो संस्कारों का पतन निश्चित है।
समाधि स्थल पर साढ़े चार घंटे का इंतजार
बलिदान मेले में मुख्यमंत्री को शाम 7:30 बजे पहुंचना था, लेकिन वे करीब साढ़े चार घंटे की देरी से रात में समाधि स्थल पहुंचे। सुरक्षा कारणों से शाम 6 बजे से ही आम लोगों का प्रवेश बंद कर दिया गया। कई लोग रानी लक्ष्मीबाई को श्रद्धांजलि देने माला लेकर पहुंचे, लेकिन वे मायूस होकर लौट गए।
सीएम के पुष्पांजलि अर्पित करने के बाद रात 11 बजे आम जनता को समाधि स्थल जाने दिया गया। कवि सम्मेलन भी रात 11:30 बजे तक शुरू नहीं हो पाया, जिसकी वजह से काफी लोग कार्यक्रम शुरू होने से पहले ही वापस लौट गए।