भोपाल:- Bhopal samachar कोविड -19 जैसी महामारी के इस कठिन समय में एक ओर पूरा विश्व अपनी आर्थिक स्थिति को बनाए रखने के लिए भरसक प्रयासों के साथ संघर्ष कर रहा है वही दूसरी ओर देश के प्रतिष्ठित शैक्षिक संस्थान जागरण लेक सिटी के देल्ही पब्लिक स्कूल ने अपनी नैतिकता व सदाचार को दरकिनार कर अपनी पूँजीवाद सोच को स्पष्ट करते हुए जो आलोचनात्मक क़दम उठाए है उसका ज़िक्र करना लज्जित होना सा प्रतीत होता है
देल्ही पब्लिक स्कूल (डी पी एस) (DPS)जो 1949 से परिचालित शिक्षा संस्था है। पिछले 70 सालों से यह स्कूल अपनी शिक्षा से ज़्यादा महँगी फ़ीस के लिए जाना गया है जिसकी औसत शुल्क एक से डेढ़लाख रुपय सालाना ज्ञात की गई है।
मध्यम व उच्च मध्यम वर्गीय परिवार के अभिभावक अपने बच्चों को इस संस्थान में भेजने में
गर्व महसूस करते है। परंतु क्या इस लॉकडाउन जैसे कठिन समय में डीपीएस की क्षमता इतनी भी
ना थी की वो अपने शिक्षकों व निचले तबके के कर्मचारियों का साथ ना दे सके ? जबकी
अभिभावकों से शिक्षा शुल्क के नाम पर 80% शुल्क जमा करवाई जा रही है।
डीपीएस स्कूल के शिक्षकों से बात करने पर पता चलता है की शिक्षकों से पूरा मेहनताना लिया जा
रहा है व उन्हें आधे वेतन के सहारे रखा गया है इस दौरान शिक्षकों के पास कहीं और जाने कोई
विकल्प नहीं है और डीपीएस इन लोगों का शोषण करने में पीछे भी नहीं है। कर्मचारियों जैसे
टेक्नीशियन, वेन ड्राइवर, सफ़ाई कर्मचारी व चपरासी जैसे लोगों को नौकरी में रखकर आधा वेतन
देना तो दूर उन्हें नौकरी से ही निकाल दिया गया बिना उनके परिवार के हालातों का अनुमान किए
हुए। वर्षों से कार्यरत ये कर्मचारियो के आर्थिक मूल्यों की रक्षा करना क्या इस बड़ी संस्था का
कर्तव्य नहीं था ? अभिभावको से मिली जानकारी के मुताविक जिन छात्रों की समय पर शुल्क नहीं
आयी उन्हें व्हाटसएप ग्रूप से ही निकाल दिया गया।
हमारी टीम द्वारा की गई रिसर्च से पता चला की ये संस्थाए इस हद तक बड़ी व शक्तिशाली हो गई है की पूरे बाज़ार को नियंत्रित कर सकती है।
एक ओर जहाँ हज़ारों एनजीओ एवं समाजिक संस्थाए समाज के छोटे तबके के लोगों को आर्थिक मदद पहुँचाने का प्रयास कर रही है वही इन पूँजीवादियों का स्वार्थ भी स्पष्ट होते नज़र आ रहा है। सारा देश आर्थिक मंदी का सामना कर रहा है मध्यम वर्गीय परिवारों को शुल्क में किसी भी प्रकार की कोई छूट नहीं दी गई लोग बच्चों की शुल्क भरना तो दूर अपने दैनिक जीवन को स्थाई रखने में ही असमर्थ है।
डीपीएस की अमानवीय विचारधारा ने उन संस्थाओ को दबाने का भरसक प्रयास किया जो समाज
की अपने स्तर पर मदद पहुँचा रहे थे जो मानवता का परिचय दे
रहा था अपने स्टाफ़ अभिभावक के साथ तत्पर इस कठिन समय में खड़ा था परंतु पूँजीवादी
विचारों से प्रेरित डीपीएस ने मानवता को दरकिनार कर इन स्कूलों पर इस क़दर दबाव बनाया की
इन संस्थाओ को ना चाहते हुए डीपीएस तानाशाही का शिकार होना पड़ा।
शैक्षिक संस्थाए जब स्वयं नैतिक मूल्यों को समझने में समर्थ है तो इनकी नियत भी स्पष्ट दिखती की है की ये सिर्फ़ शिक्षा के मूल्यों से प्रेरित नहीं बल्कि व्यापारिक नियत से प्रेरित है।