भारत की डिजिटल इकोनॉमी का आधार मानी जाने वाली इंटरनेट केबल्स पर संकट गहरा रहा है। हूती विद्रोहियों की तबाही के कारण Red Sea का इलाका हाई रिस्क जोन बन गया है। इसी रास्ते से भारत की 95% से ज्यादा इंटरनेट केबल्स गुजरती हैं। यदि केबल्स को नुकसान पहुंचता है, तो भारत में इंटरनेट ठप पड़ सकता है।
केबल कटने से बचने के लिए कंपनियों की तैयारी शुरू
Google, Airtel और Jio जैसी बड़ी कंपनियों ने इस खतरे को देखते हुए अपनी तैयारियां तेज कर दी हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, फाइबर केबल्स की संख्या बढ़ाई जा रही है, ताकि किसी भी आपात स्थिति में इंटरनेट सेवाएं जारी रह सकें। वहीं, कंपनियां जमीन पर केबल बिछाने पर भी विचार कर रही हैं।
हालांकि, यह एक बेहद महंगा विकल्प है और इससे डेटा सेंटर व क्लाउड सर्विस का खर्च काफी बढ़ जाएगा।
Red Sea में मरम्मत करना क्यों है मुश्किल ?
Lightstorm Group के CEO अमजित गुप्ता का कहना है कि Red Sea में इंटरनेट केबल्स की मरम्मत करना आसान नहीं है। एक बार यदि कोई दिक्कत होती है, तो वहां जाकर काम करना बहुत कठिन हो जाता है। https://www.india.gov.in/
इसके अलावा, हूती विद्रोही मरम्मत करने वाले जहाजों से फिरौती भी वसूलते हैं।
इसी वजह से कंपनियां दूसरे विकल्पों पर काम करने के लिए मजबूर हो रही हैं।
हूतियों ने फिरौती और दबाव दोनों के लिए केबल्स को बनाया हथियार
पिछले एक महीने में हूती विद्रोहियों ने दो कमर्शियल जहाजों पर हमला कर उन्हें डुबो दिया है। जब केबल्स की मरम्मत के लिए जहाज भेजे जाते हैं, तो हूती उनसे भारी फिरौती मांगते हैं।
इसके अलावा, केबल्स काटने का डर दिखाकर वे कई देशों पर दबाव भी बना रहे हैं।
अमेरिका ने हूतियों पर सैन्य कार्रवाई भी की, लेकिन उनकी हरकतों में कोई कमी नहीं आई है।
भारत की डिजिटल इकोनॉमी के लिए Red Sea क्यों है अहम ?
भारत को वर्ल्ड इंटरनेट से कनेक्ट करने वाले केबल्स का मुख्य रास्ता Red Sea ही है। गूगल की Blue-Raman, Airtel की 2Africa और Sea Me We 6 जैसी केबल्स मुंबई और चेन्नई तक इसी मार्ग से पहुंचती हैं।
यदि इन पर असर पड़ा तो भारत की डिजिटल इकोनॉमी को भारी नुकसान हो सकता है।
इसी कारण कंपनियां अब Red Sea के विकल्प तलाश रही हैं।
समाधान की तलाश में जुटी कंपनियां
कंपनियां ज्यादा फाइबर केबल्स जोड़ने के साथ-साथ जमीन पर केबल्स बिछाने की योजना बना रही हैं।
हालांकि, यह प्रक्रिया समय लेने वाली है और खर्चीली भी है।
लेकिन इंटरनेट सेवाओं को चालू रखने के लिए यह कदम उठाना जरूरी हो गया है।