Pakistan Nuclear Weapon: पाकिस्तान गुप्त रूप से ज़मीन के नीचे न्यूक्लियर टेस्ट कर रहा है। इस बात का दावा डोनाल्ड ट्रंप ने किया है। इसके बाद से ही भारत में हलचल तेज़ हो गई है। पाकिस्तान की ओर से किसी भी आधिकारिक पुष्टि से पहले ही पूर्व राजनयिक और सैन्य विश्लेषक यह बताने लगे हैं कि इस बार मामला साधारण नहीं है।
खबरों के मुताबिक, भारत में यह अटकल भी लगाई जा रही है कि नई दिल्ली H-Bomb यानी हाइड्रोजन बम को लेकर अपना अगला न्युक्लियर रुख देखने को मिल सकता है।
पाकिस्तान के 11 मई टेस्ट एनिवर्सरी से पहले ही यह दावा किया कि इस्लामाबाद थर्मोन्यूक्लियर कैपेबिलिटी को सुदृढ़ करने पर ज़ोर दे रहा है और यहीं से “नहले पे दहला” की बहस छिड़ी। ऐसे में क्या भारत भी पाकिस्तान को कहा जवाब देगा ?
भारत का NFU सिद्धांत
जैसा कि आप सब लोग जानते हो कि भारत की आधिकारिक स्थिति साफ़ है कि No First Use यानी भारत पहले परमाणु हमला नहीं करेगा, लेकिन NFU के बाद वाली प्रतिक्रिया कितनी तेज़, सटीक और तयशुदा होगी।
वही, दूसरी टर्म सामने आती है कि Launch On Warning (LOW)। चीन के बारे में विश्लेषक मानते हैं कि वह NFU का सार्वजनिक फायदा उठा रहा है, लेकिन असल ऑपरेशनल सिद्धांत LOW के करीब पहुंच चुका है यानी मिसाइल लॉन्च की पुष्टि मिलते ही तत्काल जवाब मिलने की संभावना है।
बता दें कि भारत की न्यूक्लियर डॉक्ट्रीन किसी भी तरह का सार्वजनिक दस्तावेज़ नहीं है। यह नीति अंदरूनी समीक्षा के ज़रिए समय-समय पर अपडेट होती है।

25 साल से टेस्टिंग पर रूक
ट्रंप के बयान ने सबको हैरान कर दिया है और उनके बयान इस दौरान आया है जब P-5 देश लगभग ढाई दशक से टेस्टिंग पर रोक थी। दरअसल, 1998 के बाद भारत ने खुद ही टेस्ट रोकने की घोषणा की थी और इसी “मोरल स्टैंडिंग” की वजह से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भरोसे का एक मॉडल भी खड़ा हुआ, लेकिन भारत किसी अंतरराष्ट्रीय कानूनी संधि पर बाध्य नहीं है यानी टेस्ट न करना भारत का स्वयं का निर्णय है।
भारत के सामने आने वाली रणनीतिक दुविधा
भारत के सामने अब चुनौती यह देखने को मिल रही है कि अगर चीन भविष्य के हथियार मॉडल के साथ आगे बढ़ रहा है और साथ ही पाकिस्तान की तरफ़ से भी न्युक्लियर नरेटिव को बढ़ावा मिल रहा है। ऐसे में भारत सिर्फ़ “क्रेडिबल मिनिमम डिटरेंस” पर कितने समय तक टिका रह सकता है?
देखा जाए तो ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत ने दुनिया को यह साबित कर दिया है कि देश की सुरक्षा नीति अब passive नहीं है। खतरे का स्रोत दूसरे देश की ज़मीन पर भी हो, तो उस पर surgical या kinetic जवाब मिलेगा।
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