London – दुनिया में अधिकतर पढ़ने वाले बच्चे इंटरनेट के अधीन होते जा रहे हैं।
जिसकी वजह से बच्चे अपनी पढ़ाई से दूर होते जा रहे हैं और अपने अच्छा परिणाम भी नही दे पा रहे हैं। इसको देखते हुए ब्रिटेन की स्वानसी और इटली की मिलान यूनिवर्सिटी ने हाल ही में संयुक्त अध्ययन किया है।
जिसमें डिग्री कोर्स में सेहत संबंधी अध्ययन के लिए दुनियाभर की 285 यूनिवर्सिटी के छात्रों से उनके डिजिटल उपयोग, पढ़ाई और रिजल्ट के बारे में जानकारी ली गई थी।
इस अध्ययन में 25% छात्रों ने बताया कि उन्होंने दिनभर में 4 घंटे ऑनलाइन बिताते हैं, जबकि 70% ने एक से तीन घंटे तक इंटरनेट का इस्तेमाल किया। वहीं इनमें 40% छात्रों ने सोशल नेटवर्किंग का इस्तेमाल किया जबकि 30% ने सूचना के लिए इसका इस्तेमाल किया।
इस समस्या के मुख्य अध्ययनकर्ता ब्रिटेन के फिल रीड ने कहा कि “इंटरनेट की लत और पढ़ाई के लिए प्रेरणा के बीच एक नकारात्मक संबंध पाया गया। अधिक इंटरनेट की लत रखने वाले छात्र पढ़ाई के दौरान तालमेल नहीं बना पाए और ज्यादा चिंतित दिखे। इन छात्रों ने पढ़ाई के लिए इंटरनेट सर्फिंग के दौरान ज्यादातर समय सोशल मीडिया, मेल और अन्य बिना काम के पेजेस देखने में किया। इससे वे अपनी मूल पढ़ाई में ध्यान नहीं दे पाए।” वहीं कंप्यूटर असिस्टेड लर्निंग के जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में कहा कि उच्च शिक्षा और अकादमिक जीवन के बीच सकारात्मक भावना की बड़ी भूमिका होती है।
इंटरनेट की लत से छात्र अपने परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताने से कतराने लगते हैं और अपने घर के बाहर की दुनिया में रुचि लेना छोड़ देते हैं।
इससे उनका शैक्षिक वातावरण भी प्रभावित होता है। वहीं मिलान यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ट्रूज़ोली ने कहा कि इंटरनेट की लत से कई तरह की क्षमता प्रभावित होती है। लेकिन इंटरनेट से दूर रहने वाले छात्र ज्यादा सफल रहते हैं। जैसे कि देश में जेईईमेंस की पहली परीक्षा में कोटा के अखिल जैन और भरतपुर के पार्थ ने इंटरनेट से दूरी रखकर टॉप किया है। वहीं हंसिका शुक्ला ने सीबीएसई 12 वीं में टॉप किया है। हंसिका शुक्ला ने कहा कि नो सोशल मीडिया पॉलिसी ने उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाया।