मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है या नहीं, सुप्रीम कोर्ट इस पर आज फैसला सुना सकता है।
कोर्ट बताएगा कि यह मामला संविधान पीठ को रेफर किया जाए या नहीं। तीन जजों की बेंच ने इस मुद्दे पर 20 जुलाई को सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुप्रीम कोर्ट में आज व्यभिचार मामले में भी अहम फैसला किया जा सकता है। कोर्ट तय करेगा कि इसमें महिला को भी दोषी माना जाए या नहीं?
माना जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का असर सीधे अयोध्या के जमीन विवाद मामले पर पड़ सकता है। दरअसल, 1994 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि नमाज कहीं भी पढ़ी जा सकती है और इसके लिए मस्जिद अहम नहीं है। तब कोर्ट ने कहा था कि सरकार अगर चाहे तो जिस हिस्से पर मस्जिद है उसे अपने कब्जे में ले सकती है।
मुस्लिम पक्ष का कहना- 1994 के फैसले ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला प्रभावित किया
हालांकि, मुस्लिम पक्ष का कहना है कि उस वक्त कोर्ट का फैसला उनके साथ अन्याय था और इलाहाबाद हाईकोर्ट के जमीन बंटवारे के 2010 के फैसले को प्रभावित करने में इसका बड़ा किरदार था। इसलिए सुप्रीम कोर्ट का जमीन बंटवारे के मुख्य मामले में किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले इस मामले को निपटाना चाहिए।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जमीन के बंटवारे का दिया था फैसला – हाईकोर्ट ने अयोध्या की जमीन को तीन हिस्सों में हिंदू और मुस्लिम पक्षों के बीच बांटा था। इनमें 2/3 हिस्सा हिंदुओं और 1/3 हिस्सा मुस्लिम पक्ष के हवाले किया गया था।
व्यभिचार मामले में भी आज आ सकता है फैसला
सुप्रीम कोर्ट आज एक और अहम मामले में फैसला सुना सकता है कि व्यभिचार में महिला भी बराबर की दोषी है या नहीं? पांच जजों की संविधान पीठ ने 9 अगस्त को व्यभिचार की 157 साल पुरानी आईपीसी की धारा 497 पर फैसला सुरक्षित रखा था। इस धारा में सिर्फ पुरुषों को आरोपी बनाया जाता है।
केंद्र की दलील भारतीय कानून को विदेशी समाज के नजरिए से न देखें – केंद्र सरकार की तरफ से एडीशन सॉलिसिटर जनरल पिंकी आंनद ने कहा था कि हमें कानून को अपने समाज में हो रहे विकास और बदलाव के नजरिए से देखना चाहिए न कि पश्चिमी समाज के नजरिए से। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा था कि विवाहित महिला अगर किसी विवाहित पुरुष से संबंध बनाती है तो सिर्फ पुरुष ही दोषी क्यों? जबकि महिला भी अपराध की जिम्मेदार है।