सारी दुनिया में बेरोजगारी की दर लगातार बढ़ रही है।
सारी दुनिया के देशों में पढ़े लिखे डिग्रीधारी बेरोजगारों की संख्या लगातार बढ़ रही है। नौकरी होते हुए भी बेरोजगारों को नौकरी नहीं मिल पा रही है। यह स्थिति दुनिया के लगभग सभी देशों में देखने को मिल रही है।
फ्रांस, इटली, स्पेन, ग्रीस और भारत में लगभग 1 तरह की स्थिति देखने को मिल रही है।
फ्रांस में बेरोजगारी की दर लगभग 8 फ़ीसदी पर पहुंच गई है। यही हाल भारत का भी है। बेरोजगारों की भारी संख्या होते हुए भी लाखों पद खाली पड़े हुए हैं। फ्रांस और भारत दोनों देशों में डिग्रीधारियों के पास स्किल्ड नहीं होने के कारण कारोबारियों और इंडस्ट्री को काम करने के लिए लोग नहीं मिल रहे हैं, जिसके कारण औद्योगिक घराने और कारोबारी अपने काम को कम कर रहे हैं। इसके विपरीत बेरोजगारों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है।
फ्रांस की लेबर यूनियनों का कहना है की लेबर कमी की कोई समस्या नहीं है।
असली समस्या कम मजदूरी है। वहीं कंपनियों का कहना है कि बेरोजगारों में स्किल्ड नहीं होने के कारण उत्पादकता पर विपरीत असर पड़ता है। उत्पादन की लागत बढ़ती है। ऐसी स्थिति में उद्योग अपना कारोबार बढ़ाने के स्थान पर उसे कम करने पर अथवा बंद करने के लिए मजबूर हो रहे हैं।
औद्योगिक इकाइयों और कारोबारियों का कहना है की नई टेक्नोलॉजी से परिचित नहीं होने के कारण भी नौकरी के अवसर बेरोजगारों को नहीं मिल पा रहे हैं।
सारी दुनिया के देश इस अजीबोगरीब स्थिति से गुजर रहे हैं। सबसे बड़े आश्चर्य की बात यह है कि पढ़े-लिखे डिग्रीधारी युवा बेरोजगारों की संख्या निरंतर बढ़ रही है, लेकिन डिग्री के अनुरूप उनमें काम की योग्यता नहीं होने के कारण बेरोजगारी सारी दुनिया में बढ़ रही है।
औद्योगिक इकाइयों और कारोबारियों के खर्च निरंतर बढ़ रहे हैं।
कुशल कर्मचारी नहीं होने के कारण उत्पादन घट रहा है। कारोबारियों को नुकसान उठाना पड़ रहा है। वह कर्ज के बोझ से दबते चले जा रहे हैं।
पिछले दो दशक में जिस तरह से कारोबार और औद्योगिक इकाइयों में डिजिटल तकनीकी का उपयोग बढ़ा है। इसमें निरंतर बदलाव आ रहे हैं, किंतु इस तेजी के साथ युवाओं की पढ़ाई के दौरान प्रेक्टिकल अनुभव नहीं होने के कारण सारा विश्व बेरोजगारी के पायदान पर खड़ा हो गया है।
भारत जैसे देश में इंजीनियर प्लंबर वेटर कुक्स और लगभग सभी विषयों की शिक्षा दी जा रही है
किंतु इसके बद भी डिग्री के अनुरुप कुशलता का अभाव होने के कारण इन्हें नौकरी नहीं मिल रही है। वहीं फैक्ट्री और कारोबार इसलिए बंद हो रहे हैं कि उन्हें प्रशिक्षित कर्मचारी उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं। फ्रांस और भारत में लाखों पद रिक्त होने के बाद भी कुशलता के अभाव में यह पद खाली पड़े हुए हैं।
पिछले एक दशक में उत्पाद की कीमत और सेवाओं की दरें काफी बढ़ी है। इसके बाद भी उद्योग और कारोबार घाटे में जा रहे हैं। ऐसी स्थिति में बेरोजगारी की समस्या सारी दुनिया के लिए वर्ल्ड वार से कम नहीं है। समय रहते इस दिशा में ध्यान नहीं दिया गया तो युवाओं का गुस्सा एक ऐसे विस्फोट के रूप में सामने आएगा, जिससे निपटना बड़ा मुश्किल होगा।