नई दिल्ली – देश में भले ही कम्युनिस्ट विचारधारा सिमट रही हो पर कुछ असाधारण नेताओं की बात की जाए तो इस विचारधारा के कुछ नेताओं को हमेशा स्थान मिलता रहेगा।
युवाओं में इन दिनों एक ऐसा ही नाम काफी लोकप्रिय हो रहा है और वह है जेएनयू छात्र नेता कन्हैया कुमार का जो बिहार की बेगूसराय लोकसभा सीट से भाजपा के फायरब्रांड नेता और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के खिलाफ भाकपा से चुनाव लड़ रहे हैं।
पहले चर्चा थी कि कन्हैया महागठबंधन की ओर से प्रत्याशी होंगे पर ऐसा न हो सका इसको लेकर जो बात सामने आई है वह है आरजेडी नेता तेजस्वी यादव का भय। वैसे बेगूसराय सीट पर उसी तरह पूरे देश की नजरें टिकी हैं, जैसे वाराणसी, अमेठी, रायबरेली और वायनाड की सीट पर। हालांकि, महागठबंन की ओर से राजद प्रत्याशी तनवीर हसन की उम्मीदवारी ने भी मुकाबले को काफी दिलचस्प बना दिया है।
कन्हैया कुमार पहले महागठबंधन की ओर से मैदान में उतरने वाले थे, मगर तेजस्वी यादव की ओर से हरी झंडी नहीं मिलने की वजह से महागठबंधन ने कन्हैया को अपना उम्मीदवार नहीं बनाया। तभी से बिहार की सियासी फिजाओं में ऐसी हवाएं चल रही हैं कि क्यों तेजस्वी ने कन्हैया को राजद के टिकट से नहीं उतारा, क्या तेजस्वी कन्हैया की लोकप्रियता से डरते हैं या फिर युवा प्रतिनिधित्व का कुछ मसला है?
दरअसल, कन्हैया को महागठबंधन की ओर से उम्मीदवार न बनाए जाने के बाद मीडिया में कई तरह की खबरें तैरती दिखीं।
हर कोई अपने अनुसार इस फैसले की व्याख्या करता दिखा। कन्हैया और तेजस्वी को लेकर कई तरह की बातें की गईं, मसलन दोनों युवा हैं और तेजस्वी नहीं चाहते कि उनके रहते बिहार में कोई उनसे बड़ा युवा नेता खड़ा हो जाए आदि-आदि।
अगर बेगूसराय आज मीडिया की सुर्खियां बटोर रहा है, तो इसमें कोई दोराय नहीं कि इसकी वजह कन्हैया कुमार की उम्मीदवारी है। कन्हैया कुमार की उम्मीदवारी ने बेगूसराय सीट को सुर्खियों में ला दिया है, इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि कन्हैया की लोकप्रियता का ग्राफ कितना ऊंचा है और शायद तेजस्वी यादव इस बात को बखूबी जानते हैं।
राजनीतिक विश्लेषक ऐसा मानते हैं कि महागठबंधन की ओर से कन्हैया कुमार को टिकट न मिलने की वजह तेजस्वी यादव का राजनीतिक डर भी रहा।
तेजस्वी यादव कभी नहीं चाहेंगे कि उनके सामने बिहार में कोई उनसे बड़ा या उन्हें टक्कर देने वाला कोई युवा नेता सामने आ जाए। तेजस्वी को शायद इस बात का डर सता रहा था कि अगर वह कन्हैया को टिकट दे देते हैं, तो कल होकर कन्हैया उनकी लोकप्रियता को टक्कर देते दिख सकते हैं या फिर उनके सामांतर एक यूथ छवि को गढ़ते दिख सकते हैं।
इस डर की कई वजहें भी हैं।
कन्हैया युवाओं के बीच खासे लोकप्रिय हैं, इसकी बानगी वह कई मंचों से दिखा चुके हैं। तेजस्वी यादव को भी इसका एहसास है कि कन्हैया की जीत, कन्हैया को और भी ज्यादा पॉपुलर बना देगी और उनमें और भी धार आ जाएगा। साथ ही तेजस्वी यादव की तुलना कन्हैया कुमार से होने लगती। इसलिए राजनीति के दृष्टिकोण से देखें तो यह एक तरह से तेजस्वी के लिए खतरे की घंटी ही साबित हो सकते हैं।