मध्य प्रदेश की महिला जज अदिति कुमार शर्मा ने 28 जुलाई को इस्तीफा देकर देश की न्याय व्यवस्था पर गहरी चोट की है। उन्होंने हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर कहा कि वह इस कारण पद छोड़ रही हैं क्योंकि जिस अधिकारी ने उनका उत्पीड़न किया, उसे न सिर्फ पूछताछ से बचा लिया गया बल्कि हाई कोर्ट का जज भी बना दिया गया।
हालांकि, उन्होंने अपने पत्र में साफ किया कि वह न्यायपालिका को शर्मिंदा नहीं करना चाहतीं, बल्कि यह संस्था ही उन्हें नाकाम कर गई है।
प्रमोशन पाने वाला जज, और अदिति का आरोप
अदिति शर्मा ने आरोप लगाया कि उन्होंने जिस वरिष्ठ जज के खिलाफ उत्पीड़न के सबूत दिए थे, उसी को कॉलेजियम सिस्टम ने प्रमोट कर दिया। उनके मुताबिक, उस व्यक्ति को समन नहीं, बल्कि सम्मान मिला। उन्होंने कहा कि वह अब ‘कोर्ट की अधिकारी’ नहीं, बल्कि ‘उसकी शिकार’ बनकर जा रही हैं।
वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी 2025 में उनकी बर्खास्तगी को मनमाना बताते हुए सेवा में पुनः बहाल किया था। इसके बावजूद, उनके विरोध के बावजूद उसी अधिकारी को हाई कोर्ट का जज बनाना उनके लिए बेहद अस्वीकार्य था।
Department of Justice, Government of India – Order of appointments and resignations – doj.gov.in
जब सुप्रीम कोर्ट भी बना फर्जीवाड़े का शिकार
इससे पहले एक मामला सामने आया था, जिसमें एक याचिकाकर्ता ने फर्जी प्रतिवादी को खड़ा कर सुप्रीम कोर्ट से फैसला अपने पक्ष में ले लिया। मामला जमीन विवाद से जुड़ा था और जब असली प्रतिवादी को पता चला तो कोर्ट में नया मोड़ आया।
इसी तरह, तीसरे वकील ने कोर्ट में हलफनामा देकर बताया कि उसे तो इस मामले की जानकारी तक नहीं थी, फिर भी उसका नाम फैसले में शामिल कर लिया गया।
जस्टिस यशवंत वर्मा की संदिग्ध नकदी का मामला
आज़ाद भारत के इतिहास में जस्टिस यशवंत वर्मा का केस एक बड़ा धब्बा है। उनके घर से बोरियों में संदिग्ध कैश मिलने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने जांच करवाई। जांच समिति की रिपोर्ट के बाद राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से महाभियोग की सिफारिश की गई।
हालांकि, जस्टिस वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर जांच की वैधता पर सवाल उठाया, लेकिन तब तक संसद में महाभियोग की प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी।
अंग्रेजी नहीं बोल पाने पर अफसर की योग्यता पर सवाल?
उत्तराखंड हाई कोर्ट के एक फैसले में एडीएम की अंग्रेजी न जानने की वजह से उनकी क्षमता पर सवाल उठाए गए। कोर्ट ने कहा कि ऐसा अधिकारी कार्यकारी पद पर कैसे काम करेगा ?
इसके खिलाफ प्रदेश निर्वाचन आयुक्त ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की और सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी। दूसरी तरफ, यह मुद्दा भाषा को लेकर संवेदनशीलता और न्याय के दायरे को समझने की ज़रूरत को भी दिखाता है।
जब राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से मांगा जवाब
इसी बीच सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनाया कि राष्ट्रपति और राज्यपाल तीन महीने में विवेकाधीन मामलों पर निर्णय लें। लेकिन, इस पर राष्ट्रपति ने कोर्ट से 14 सवाल पूछ डाले, और कोर्ट को संविधान पीठ बनानी पड़ी।
इसके अलावा, कॉलेजियम सिस्टम भी लगातार विवादों में रहा है। कई बार सवाल उठते हैं कि पारदर्शिता के बिना की गई नियुक्तियां न्यायपालिका की छवि को नुकसान पहुंचा सकती हैं।
निष्कर्ष: जब इंसाफ मांगती है न्यायपालिका
भारतीय नागरिक न्याय के लिए अदालतों की ओर देखते हैं, लेकिन जब खुद न्यायपालिका को न्याय मांगना पड़े तो स्थिति चिंताजनक हो जाती है।
इसी तरह, महिला जज अदिति शर्मा का इस्तीफा हमें यही सोचने पर मजबूर करता है कि अगर एक जज को इंसाफ नहीं मिला, तो आम जनता की उम्मीदें कहां टिकेंगी?