अंगदान बढ़ाने को लेकर एमपी सरकार का नया कदम
- मध्यप्रदेश सरकार अब ब्रेन डेड मरीजों से अंगदान की प्रक्रिया को
गंभीरता से लागू करने जा रही है। - प्रदेश के सभी ट्रॉमा सेंटर्स और मेडिकल कॉलेजों में अंगदान की
व्यवस्था की जाएगी।
इसके लिए स्थायी काउंसलर भी नियुक्त किए जाएंगे,जो ब्रेन डेड
मरीजों के परिजनों से अंगदान की स्वीकृति लेने में मदद करेंगे।
NOTTO की गाइडलाइन के बाद हुआ निर्णय
यह फैसला राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (NOTTO) की नई गाइडलाइन के तहत लिया गया है। लोक स्वास्थ्य और चिकित्सा शिक्षा विभाग के मुताबिक, कई निर्देशों का पालन पहले से किया जा रहा था। अब सरकारी अस्पतालों में ब्रेन डेड मरीज से अंगदान को लेकर ज़रूरी ढांचा तैयार किया जाएगा।
सभी ट्रॉमा सेंटर्स में बनेगा अंग प्राप्ति केंद्र
NOTTO के निर्देशानुसार, सभी ट्रॉमा सेंटर्स को अंग एवं ऊतक प्राप्ति केंद्र के रूप में THOTA अधिनियम के तहत पंजीकृत किया जाएगा। मेडिकल कॉलेजों में यह सुविधा चरणबद्ध तरीके से शुरू होगी।
पूरे देश में 1100 अंगदान, एमपी की हिस्सेदारी केवल 0.7%
- हर साल देश में करीब 1100 ब्रेन डेड मरीजों से अंगदान होता है।
- इनमें 82% योगदान केवल तेलंगाना, तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र और गुजरात से आता है।
- जबकि मध्यप्रदेश की हिस्सेदारी केवल 0.7% है।
- इसकी बड़ी वजह सरकारी अस्पतालों में सुविधाओं की कमी और
जन-जागरूकता का अभाव है।
15 अगस्त को अंगदाताओं को मिलेगा राजकीय सम्मान
- मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल ने अंगदान को लेकर सरकार की मंशा स्पष्ट की है।
- इसी क्रम में इस 15 अगस्त को प्रदेश के सभी अंगदाताओं को राजकीय सम्मान दिया जाएगा।
महिलाओं को वेटिंग लिस्ट में मिलेगी प्राथमिकता
- नई गाइडलाइन के मुताबिक, अब अंगों की वेटिंग लिस्ट में महिलाओं को अतिरिक्त अंक दिए जाएंगे।
- साथ ही, अगर किसी दिवंगत दाता के परिवार के सदस्य को अंग की ज़रूरत हो, तो उसे प्राथमिकता दी जाएगी।
- इस पहल का उद्देश्य है—जागरूकता, पारदर्शिता और लैंगिक असमानता को दूर करना।
जन-जागरूकता बढ़ाने होंगे ब्रांड एम्बेसडर
- NOTTO ने राज्यों से आग्रह किया है कि वे अंगदान को लेकर ब्रांड एम्बेसडर नियुक्त करें।
- इसका मकसद लोगों को जानकारी देना और जागरूकता फैलाना है।
फिलहाल एम्स भोपाल में ही है यह सुविधा
राज्य में अभी केवल 6 अस्पतालों में ब्रेन डेड मरीज से अंगदान संभव है।
इनमें एम्स भोपाल एकमात्र सरकारी संस्थान है।
भोपाल और इंदौर के मेडिकल कॉलेजों में यह सुविधा
अब तक केवल कागज़ों तक सीमित है।
किडनी ट्रांसप्लांट में सबसे आगे है भोपाल
- एम्स भोपाल और हमीदिया अस्पताल में किडनी ट्रांसप्लांट तेज़ी से हो रहे हैं।
- एम्स में 11 ट्रांसप्लांट हुए, जिनमें 3 कैडेवरिक थे।
- वहीं, गांधी मेडिकल कॉलेज में 10 ट्रांसप्लांट हुए, जो सभी लाइव थे।
- बंसल अस्पताल 400 से ज्यादा किडनी ट्रांसप्लांट कर चुका है।
राष्ट्रीय स्तर पर एमपी अब भी पीछे
- SOTTO की कंवीनर डॉ. कविता कुमार ने बताया कि राज्य इस क्षेत्र में अभी शुरुआती चरण में है।
- जैसे कोई बच्चा चलना सीखता है, वैसी स्थिति है।
- सबसे ज़रूरी है कि लोग अंगदान पर चर्चा करें और सही जानकारी प्राप्त करें।
सरकारी अस्पतालों को चाहिए संसाधन और सेटअप
- गांधी मेडिकल कॉलेज में मैनपावर और जगह मौजूद है,
लेकिन अंगों की निकासी के लिए ज़रूरी मशीनें और जांच सुविधाएं नहीं हैं। - सरकार इस दिशा में सक्रिय है और जल्द ही बदलाव देखने को मिल सकते हैं।
ब्रेन डेड मरीज से किन अंगों का दान संभव?
- लिविंग डोनर: 18 वर्ष से अधिक उम्र के व्यक्ति एक किडनी या लीवर का हिस्सा दान कर सकते हैं।
- ब्रेन डेड डोनर: किसी भी उम्र का व्यक्ति ब्रेन डेड होने पर 8 अंग और कई ऊतक दान कर सकता है।
- इनमें हार्ट, 2 फेफड़े, लीवर, 2 किडनी, पैंक्रियाज, छोटी आंत, कॉर्निया, हड्डी, त्वचा और हार्ट वाल्व शामिल हैं