साल 2006 के मुंबई लोकल ट्रेन ब्लास्ट मामले में बॉम्बे हाइकोर्ट ने बड़ा फैसला दिया। न्यायालय द्वारा दोषी ठहराए गए सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया है।
इनमें से 5 को पहले मौत की सजा और 7 को उम्र कैद की सजा सुनाई गई थी। हाईकोर्ट ने सभी को निर्दोष करार देते हुए तत्काल रिहा करने का आदेश दिया है।
न्यायमूर्ति अनिल किलोर और न्यायमूर्ति एस. चांडक की खंडपीठ ने इस ऐतिहासिक फैसले में कहा कि “जो भी सबूत पेश किए गए थे, उनमें कोई ठोस तथ्य नहीं था”,
और इसी आधार पर “सभी आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी किया गया है।”
11 जुलाई, 2006 को मुंबई की लोकल ट्रेनों में हुए सिलसिलेवार धमाकों के मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट का ये फैसला 19 साल बाद आया है।
कोर्ट में सुनवाई पूरी फैसला रहा लंबित
जनवरी 2025 में इस मामले की सुनवाई पूरी हो गई थी। इसके बाद, कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया।
येरवडा, नाशिक, अमरावती और नागपुर जेल में बंद आरोपियों को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पेश किया गया।
इसके साथ ही, हाईकोर्ट ने दोषियों की अपील को स्वीकार किया।
इसके विपरीत, राज्य सरकार द्वारा मृत्युदंड की पुष्टि के लिए दायर याचिका खारिज कर दी गई।
अब बात करें सबूतों की। कोर्ट ने कहा कि अभियोजन द्वारा पेश किए गए ज्यादातर गवाहों के बयान अविश्वसनीय थे।
खासकर वे टैक्सी ड्राइवर और चश्मदीद जिनकी गवाही पर आरोपियों की पहचान टिकी थी। कोर्ट ने इन बयानों पर गंभीर सवाल उठाए।
साथ ही टिप्पणी की कि, “ब्लास्ट के करीब 100 दिन बाद किसी आम व्यक्ति का किसी संदिग्ध को पहचानना स्वाभाविक नहीं है।”
ब्लास्ट से जुड़े बरामदगी को बताया ‘अप्रासंगिक’
धमाकों से जुड़े जिन सबूतों की बरामदगी की बात अभियोजन ने की – जैसे कि बम, हथियार, नक्शे आदि।
कोर्ट ने उन्हें भी केस से असंबंधित बताया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब “प्रॉसिक्यूशन यह साबित ही नहीं कर सका कि धमाके में किस तरह का बम इस्तेमाल हुआ था,” तब ऐसी बरामदगी का कोई महत्व नहीं रह जाता।
11 जुलाई 2006 की शाम मुंबई की लोकल में महज 11 मिनट के भीतर सात अलग-अलग स्थानों पर हुए बम धमाकों हुए थे।
इस धमाके में 189 लोगों की जान चली गई थी। जबकि 827 से अधिक यात्री घायल हुए थे।
कुल 13 आरोपियों को गिरफ्तार किया था
इस मामले में महाराष्ट्र एटीएस ने कुल 13 आरोपियों को गिरफ्तार किया था। वहीं, 15 अन्य को फरार घोषित किया गया।
इनमें से कई के पाकिस्तान में होने का शक है। इसके अलावा, जांच एजेंसी ने MCOCA और UAPA के तहत मामला दर्ज किया।
इसके बाद, नवंबर 2006 में चार्जशीट दाखिल की गई। फिर, 2015 में ट्रायल कोर्ट ने 12 आरोपियों को दोषी ठहराया।
इनमें से 5 को मौत की सजा मिली, जबकि 7 को उम्रकैद दी गई।
उसी साल, राज्य सरकार ने मौत की सजा की पुष्टि के लिए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की।
इसके कुछ समय बाद, 2019 से 2023 के बीच दोषियों ने भी अपनी सजा और दोषसिद्धि को चुनौती दी। उन्होंने अपीलें दाखिल कीं।हालांकि, सबूतों की भारी मात्रा और केस की जटिलता के कारण सुनवाई में देरी हुई।
इतना ही नहीं, यह मामला कई बार अलग-अलग बेंचों के समक्ष सूचीबद्ध हुआ। बावजूद इसके, नियमित सुनवाई नहीं हो सकी।
आखिरकार, दोषी एहतेशाम सिद्दीकी ने त्वरित सुनवाई की मांग करते हुए अर्जी दाखिल की।
इसके बाद, हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई शुरू की। अब, कोर्ट अपना फैसला सुनाने जा रहा है।