मोहन भागवत का बयान और नई चर्चा
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में नागपुर में एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि 75 साल की उम्र पूरी होने पर नेताओं को खुद ही रुक जाना चाहिए।
इसी बीच, इस बयान का जुड़ाव सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी किया जाने लगा है, क्योंकि पीएम मोदी इस साल 17 सितंबर को 75 वर्ष के होने जा रहे हैं।
बीजेपी में 75 साल की उम्र पर रिटायरमेंट की परंपरा

2014 में केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार बनने के बाद एक अघोषित परंपरा बनी है।
इसके तहत, जो नेता 75 साल के हो जाते हैं, उन्हें सक्रिय राजनीति से अलग कर दिया जाता है।
इसी वजह से कई बड़े नेताओं को टिकट नहीं मिला और न ही उनका कार्यकाल बढ़ाया गया।
भागवत का बयान किस तरफ इशारा करता है ?
इसी बीच, भागवत के बयान को लेकर राजनीतिक गलियारों में चर्चाएं तेज हो गई हैं।संघ से जुड़े एक वरिष्ठ विचारक ने बताया कि RSS समय-समय पर ऐसे इशारे करता है। वहीं दूसरी ओर, बीजेपी के वरिष्ठ नेता का कहना है कि मोदी खुद सक्षम हैं और सही समय पर फैसला लेंगे।
नोटबंदी के समय का बयान भी फिर चर्चा में
इसके अलावा, पीएम मोदी का 2016 में मुरादाबाद की ‘परिवर्तन रैली’ में दिया गया बयान भी फिर चर्चा में आ गया है। उस समय मोदी ने कहा था, “हम तो फकीर आदमी हैं, झोला लेकर चल पड़ेंगे।” इसी को लेकर अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या मोदी अब भी वही सोच रखते हैं?
क्या यह परंपरा लोकतंत्र के लिए सही है ?
हालांकि, कुछ लोग मानते हैं कि ऐसी परंपराएं युवाओं को मौका देती हैं और नेतृत्व में नया उत्साह भरती हैं। वहीं, दूसरी तरफ, आलोचक इसे राजनीतिक मजबूरी और लोकतांत्रिक विकल्पों की कमी भी मानते हैं।
मोदी की अगली रणनीति क्या होगी ?

इसी तरह, सवाल उठने लगे हैं कि क्या पीएम मोदी इस परंपरा का पालन करेंगे या कोई नई लकीर खींचेंगे ? संघ और पार्टी दोनों के भीतर इस मुद्दे पर चर्चाएं तेज हैं।
आपकी राय क्या है ?
आप इस मुद्दे पर क्या सोचते हैं ? क्या 75 साल की उम्र के बाद नेताओं को रिटायर हो जाना चाहिए या अनुभव का लाभ मिलता रहना चाहिए? अपनी राय कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताएं।