Rafale Deal – प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की राफेल डील एक बार फिर विवादों में गिरती हुई नज़र आ रहीं हैं।
जहां एक तरफ राहुल गांधी अब तक राफेल डील पर सवाल उठाते हुए आए थे। वहीं अब दूसरे राजनीतिक दलों के नेता और समाजसेवी भी इस डील को लेकर सवाल खड़े कर रहें हैं।
बुधवार को मशहूर वकील प्रशांत भूषण, असंतुष्ट बीजेपी नेता यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी ने दावा किया कि मोदी सरकार की राफेल डील ने सरकारी खजाने को बड़ा नुकसान पहुंचाने का काम किया है और इस डील से राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने का काम किया गया है। इन तीनों नेताओ ने आरोप लगाया कि इस डील के जरिए अनिल अंबानी की रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड को फायदा पहुंचाने का काम किया गया है। साथ ही इन नेताओ का आरोप हैं की साल 2015 में मोदी सरकार ने फ्रांस दौरे के वक्त जब डील का ऐलान किया तब उन्होंने न सिर्फ प्रोटोकॉल को नजरअंदाज किया बल्कि पूर्व की कांग्रेस सरकार (यूपीए) के कार्यकाल में की गई सस्ती राफेल डील को भी किनारे कर दिया।
इन सभी नेताओं ने कहां कि यूपीए सरकार ने दसॉल्ट के साथ बिडिंग प्रक्रिया के बाद 18 कॉम्बैट एयरक्राफ्ट खरीदने का समझौता किया।
इस समझौते के तहत जहां कंपनी को रेडी टू फ्लाई एयरक्राफ्ट देने के साथ ही केन्द्र सरकार की कंपनी हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) को टेक्नोलॉजी समेत 108 अन्य एयरक्राफ्ट बनाने में मदद देगी। इन तीनों नेताओं ने दावा किया कि यूपीए सरकार की इस डील से सरकारी खजाने पर महज 40 हजार करोड़ रुपए का बोझ पड़ा।
वहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब फ्रांस के साथ यह डील की तो उसने पुरानी डील का संज्ञान नहीं लिया और 36 एयरक्राफ्ट को खरीदने के लिए 60 हजार करोड़ रुपये में समझौता किया। खास बात है कि 2015 में की गई इस डील में यूपीए की डील के तहत एचएएल द्वारा 108 एयरक्राफ्ट निर्मित कराने पर कोई समझौता नहीं शामिल किया गया। चौंकाने वाली बात यह भी है कि 2015 में किए गए करार में टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के संबंध में भी कोई समझौता नहीं किया गया जिसके चलते सरकारी खजाने को एक तरह से नुकसान पहुंचाने का काम किया गया।
साथ ही इन तीनों नेताओं ने दावा किया राफेल डील पर जारी सस्पेंस से साफ है कि यह डील भी बोफोर्स डील की तर्ज पर संदिग्ध है। इन नेताओं ने दावा किया कि जिस तरह से बोफोर्स डील में कांग्रेस सरकार ने सच्चाई छिपाने की कोशिश की उसी तरह राफेल डील में मोदी सरकार सच्चाई पर पर्दा डालने का काम कर रही है। हालांकि तीनों नेताओं ने दावा किया कि राफेल डील में भ्रष्टाचार का स्तर 1980 के दशक में हुए बोफोर्स घोटाले के भ्रष्टाचार से काफी बड़ा है और राफेल डील ने बोफोर्स डील से बड़ा नुकसान सरकारी खजाने को पहुंचाने का काम किया है।