सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक आदेश पर नाराजगी जताते हुए उसे अब तक का सबसे खराब और त्रुटिपूर्ण फैसला बताया। कोर्ट ने कहा कि संबंधित जज ने दीवानी विवाद को आपराधिक कार्यवाही में बदलकर न्याय का मजाक उड़ाया है। इसलिए, उन्हें अब किसी भी क्रिमिनल केस की सुनवाई नहीं करने दी जाएगी।
जज को सीनियर जज के साथ बैठने का निर्देश
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने कहा कि संबंधित जज को हाई कोर्ट के अनुभवी सीनियर जज के साथ खंडपीठ में बैठाया जाएगा। यह कदम इसलिए उठाया गया है ताकि भविष्य में ऐसी गलतियां न हों और न्यायिक प्रक्रिया पर भरोसा बना रहे।
क्या था हाई कोर्ट के जज का ‘त्रुटिपूर्ण’ आदेश?
इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज ने एक कंपनी के खिलाफ आपराधिक समन रद्द करने से इनकार कर दिया था।
मामला पूरी तरह से दीवानी प्रकृति का था, लेकिन जज ने आपराधिक कार्यवाही की अनुमति दे दी।
जज का तर्क था कि शिकायतकर्ता को दीवानी उपाय अपनाने के लिए कहना अनुचित है क्योंकि इसमें बहुत समय लगता है।
Supreme Court की वेबसाइट : https://www.sci.gov.in/
सुप्रीम कोर्ट ने जज पर उठाए सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संबंधित जज ने खुद को और भारतीय न्यायपालिका दोनों को शर्मिंदा किया है।
शीर्ष अदालत ने यह भी पूछा कि हाई कोर्ट स्तर पर ऐसी गंभीर गलतियां क्यों हो रही हैं।
कोर्ट ने संदेह जताया कि क्या यह आदेश बाहरी दबाव या कानून की अज्ञानता का परिणाम है।
क्या था पूरा मामला ?
यह मामला शिखर केमिकल्स और ललिता टेक्सटाइल्स के बीच एक व्यावसायिक लेनदेन से जुड़ा हुआ था।
ललिता टेक्सटाइल्स ने 47.75 लाख रुपये की शेष राशि की वसूली के लिए आपराधिक शिकायत दर्ज कराई थी।
मजिस्ट्रेट ने शिकायतकर्ता का बयान दर्ज करने के बाद कंपनी के खिलाफ समन जारी कर दिया।
शिखर केमिकल्स ने इस आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी, पर हाई कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।
इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जहां शीर्ष अदालत ने हाई कोर्ट के आदेश पर कड़ा रुख अपनाया।
सुप्रीम कोर्ट ने दी साफ चेतावनी
4 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दीवानी मामलों में आपराधिक कार्यवाही की अनुमति नहीं दी जा सकती। यह कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है और हाई कोर्ट से यह उम्मीद की जाती है कि वह इस स्थापित कानून का पालन करे।