मॉनसूत्र सत्र की शुरुआत एक बड़े राजनीतिक घटनाक्रम से हुई।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अचानक इस्तीफा दे दिया।
उन्होंने सोमवार शाम स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए पद छोड़ा।
अब उनके इस कदम के कई मायने निकाले जा रहे हैं।
यह केवल सरकार के लिए नहीं, बल्कि भाजपा के भीतर भी बड़े बदलाव का संकेत माना जा रहा है।
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भाजपा को नए राष्ट्रीय अध्यक्ष की तलाश
दरअसल, धनखड़ ने ऐसे वक्त पर इस्तीफा दिया है जब भाजपा नए राष्ट्रीय अध्यक्ष की तलाश में है।
इस बीच, उपराष्ट्रपति पद के लिए भाजपा को एक अनुभवी और सक्षम नेता की जरूरत होगी।
ऐसा व्यक्ति जो संवैधानिक जिम्मेदारियां अच्छी तरह निभा सके।
खास बात यह है कि 2029 से पहले ‘एक देश, एक चुनाव’ जैसे अहम विधेयक पेश किए जा सकते हैं।
ऐसे में, राज्यसभा अध्यक्ष की भूमिका पहले से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाती है।
इसलिए, यह इस्तीफा केवल एक पद परिवर्तन नहीं, बल्कि भविष्य की राजनीतिक दिशा की झलक भी है।
भाजपा को कैसे उम्मीदवार की तलाश
पार्टी अध्यक्ष पद के लिए पार्टी को ऐसे उम्मीदवार की तलाश है, जो 2029 के लोकसभा चुनाव की दिशा तय करने में मददगार हो। साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में एनडीए सरकार की उपलब्धियों को भी आगे बढ़ा सके।
कैबिनेट विस्तार के आसार
इन हालात को देखते हुए मंत्रिमंडल में विस्तार की भी चर्चाएं जोर पकड़ रही हैं।
हालांकि, इसे लेकर सरकार ने आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं कहा है।
इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, कुछ नए चेहरे भी शामिल हो सकते हैं।
वहीं, कुछ मौजूदा मंत्रियों को नए पदों पर भेजा जा सकता है।
इसके चलते सरकार और पार्टी दोनों में ही बड़े स्तर पर बदलाव होंगे।
खास बात है कि हाल ही में RSS यानी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने 75 साल की उम्र को लेकर बयान दिया था।
विपक्षी दलों के नेता दावा कर रहे थे कि यह पीएम मोदी के लिए संदेश है। इधर, धनखड़ मई में 74 साल के हुए थे।
जल्द कराने होंगे चुनाव
संविधान का अनुच्छेद 68(2) इस स्थिति को स्पष्ट करता है।
इसके अनुसार, यदि उपराष्ट्रपति की मृत्यु हो जाए, इस्तीफा दें या उन्हें पद से हटा दिया जाए, तो रिक्ति को भरने के लिए चुनाव जल्द कराना होगा।
इसके साथ ही, जो व्यक्ति इस चुनाव में निर्वाचित होगा, वह अपने कार्यभार संभालने की तारीख से पांच साल तक पद पर बना रहेगा।
हालांकि, संविधान में कुछ स्थितियों को लेकर स्पष्टता नहीं है।
जैसे, यदि उपराष्ट्रपति का कार्यकाल खत्म होने से पहले ही वे इस्तीफा दे दें, या फिर राष्ट्रपति का कार्यभार संभालें।
तो सवाल उठता है कि उस दौरान उपराष्ट्रपति के कर्तव्यों का निर्वहन कौन करेगा?
इस संबंध में, संविधान मौन है।
यही वजह है कि ऐसे हालात में प्रशासनिक व्यवस्था को लेकर असमंजस की स्थिति बन सकती है।
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