भारत विविधता में एकता का देश है। अलग-अलग धर्म, जाति, संस्कृति और भाषाओं के बीच भी यहां हर कोई एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है। लेकिन बीते कुछ समय से देश में भाषाओं को लेकर विवाद की बातें सामने आती रही हैं। इसी मुद्दे पर देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने पुदुचेरी विश्वविद्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम में बड़ा बयान दिया है।
उन्होंने कहा कि भारत को भाषाओं के नाम पर बंटवारा झेलने की कोई जरूरत नहीं है। हमें एकजुट होकर आगे बढ़ना चाहिए।
भारत की भाषाई समृद्धि पर गर्व
उपराष्ट्रपति ने अपने संबोधन में कहा कि भारत में 22 भाषाओं में संसद की कार्यवाही हो सकती है। यह हमारी भाषाई समावेशिता का बेहतरीन उदाहरण है। उन्होंने संस्कृत, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम, उड़िया, मराठी, पालि, प्राकृत, बांग्ला और असमिया जैसी भाषाओं को क्लासिकल भाषाएं बताते हुए कहा कि भारत इस मामले में दुनिया का सबसे समृद्ध देश है।
धनखड़ ने कहा, “सनातन संस्कृति हमें एकता और साझा उद्देश्य की भावना सिखाती है। हमें अपने राष्ट्र की उपलब्धियों पर गर्व करना चाहिए। भाषाओं के नाम पर बंटवारा ठीक नहीं। भारत को इससे ऊपर उठकर सोचना होगा।”
नई शिक्षा नीति को बताया ‘गेम चेंजर’
उपराष्ट्रपति ने इस मौके पर नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) की भी जमकर तारीफ की। उन्होंने कहा कि यह नीति देश के युवाओं के लिए गेम चेंजर है। इसमें छात्रों को बहुपक्षीय कौशल, नई तकनीक और ज्ञान के साथ अपनी रुचि के मुताबिक कोर्स चुनने का मौका दिया गया है।
धनखड़ ने उन राज्यों से भी अपील की जो अब तक NEP को लागू नहीं कर सके हैं। उन्होंने कहा कि सभी राज्यों को इसे पूरी भावना और जिम्मेदारी के साथ लागू करना चाहिए।
राजनीतिक दलों को भी दी नसीहत
उपराष्ट्रपति ने अपने भाषण में राजनीतिक दलों को भी संबोधित किया। उन्होंने कहा कि संविधान में टकराव और अव्यवस्था की कोई जगह नहीं है। सभी राजनीतिक दलों को देशहित में काम करना चाहिए और एक-दूसरे को रोकने या अड़चन डालने की राजनीति से बचना चाहिए।
धनखड़ ने कहा कि देश में पिछले कुछ वर्षों में अभूतपूर्व विकास हुआ है और अब भारत दुनिया का सबसे महत्वाकांक्षी देश बन चुका है। ऐसे समय में हमें भाषाओं या किसी भी मुद्दे पर बंटवारा नहीं, बल्कि एकजुटता और विकास पर ध्यान देना चाहिए।