धराली में सैलाब ने मचाई भारी तबाही
5 अगस्त 2025 को उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले का धराली गांव अचानक आई फ्लैश फ्लड की चपेट में आ गया। पानी और मिट्टी के इस सैलाब ने कई जिंदगियां छीन लीं और गांव में तबाही के निशान छोड़ दिए। लेकिन सवाल यह है कि तबाही एक ही दिशा में क्यों हुई?
नदी की बनावट ने क्यों बढ़ाई तबाही?
धराली गांव के पास बहने वाली नदी की बनावट (River Morphology) इस आपदा की एक अहम वजह बनी। वैज्ञानिकों के अनुसार, नदी का मोड़ और किनारों की बनावट यह तय करती है कि सैलाब किस दिशा में जाएगा।
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फ्लैश फ्लड एक ही दिशा में क्यों गया?
जब कोई नदी मोड़ पर होती है, तो उसका कॉनवेक्स साइड यानी बाहर की तरफ का हिस्सा ज्यादा दबाव और कटाव झेलता है। यही वजह थी कि सैलाब ने धराली गांव के एक तरफ ही तबाही मचाई। वहीं, कॉनकेव साइड यानी अंदर की ओर मुड़ा हिस्सा प्राकृतिक सुरक्षा की तरह काम करता है।
कुछ घर बचे और कुछ तबाह क्यों हुए?
धराली में जिन घरों की लोकेशन कॉनकेव साइड पर थी, वे सैलाब से सुरक्षित रहे। जबकि कॉनवेक्स साइड पर बने घर पूरी तरह उजड़ गए। इससे साबित होता है कि नदी के मोड़ और किनारे पर निर्माण करना कितना जोखिम भरा हो सकता है।
54 करोड़ साल पुरानी मिट्टी ने कैसे बढ़ाया खतरा?
धराली की मिट्टी भूवैज्ञानिक रूप से बेहद पुरानी और ढीली संरचना वाली है। करीब 54 करोड़ साल पुरानी यह मिट्टी पानी के तेज बहाव में तुरंत धसक जाती है। यही वजह रही कि फ्लैश फ्लड का असर और भी ज्यादा विनाशकारी साबित हुआ।
जलवायु परिवर्तन ने क्यों बढ़ाया संकट?
- हाल के वर्षों में जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश का पैटर्न बेहद असामान्य हो गया है।
- भारी बारिश, ग्लेशियर पिघलना और अचानक मौसम बदलना
- ये सब फ्लैश फ्लड की घटनाओं को बढ़ावा दे रहे हैं। धराली में आई
आपदा इसी बदलाव का संकेत है।
मानवीय लापरवाही ने भी निभाई भूमिका
- धराली में अवैज्ञानिक निर्माण, नदी के बहुत पास घर बनाना, और मिट्टी
की जांच के बिना इन्फ्रास्ट्रक्चर खड़ा करना – - ये सारी मानवीय गलतियां आपदा को और भयानक बना देती हैं।
- यदि समय रहते वैज्ञानिक सलाह ली जाती, तो नुकसान को काफी हद तक टाला जा सकता था।
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इस आपदा से हमें क्या सबक मिलते हैं?
- धराली की घटना हमें यह सिखाती है कि नदी विज्ञान और पर्यावरणीय
समझ को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। - हमें नदी के किनारे निर्माण से पहले भू-वैज्ञानिक रिपोर्ट लेनी चाहिए।
- साथ ही, जलवायु परिवर्तन की गंभीरता को समझना अब जरूरी हो गया है।
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