नई दिल्ली – चार राज्य- ओडिशा, पंजाब, महाराष्ट्र( Four states – Odisha, Punjab, Maharashtra) और तेलंगाना कोरना वायरस के संक्रमण के बढ़ते मामलों के मद्देनजर लॉकडाउन 30 अप्रैल तक बढ़ाने की घोषणा कर चुके हैं।
केंद्र सरकार भी 21 दिनों के लॉकडाउन( lockdown of 21 days )को दो सप्ताह के लिए बढ़ाने वाली है। कानून के जरिए राज्य सरकार महामारी को फैलने से रोकने के लिए लॉकडाउन जैसे अस्थायी विकल्पों की घोषणा कर सकती है। ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि फिर केंद्र सरकार को लॉकडाउन घोषित करने की क्या जरूरत है।
इसके उत्तर में केंद्र सरकार साफ कर चुकी है कि राज्यों द्वारा उठाए गए कदमों और उसके क्रियान्वयन में एकरूपता की कमी हो सकती है। 24 मार्च को लॉकडाउन की घोषणा राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने की थी, जिसके मुखिया खुद प्रधानमंत्री होते हैं।
संभावना है कि 14 अप्रैल के बाद बढ़ने वाले लॉकडाउन की भाषा भी वही होगी, जो 3 सप्ताह पहले
जारी आदेश की थी। वैसे, तो खुद प्रधानमंत्री राज्यों के मुख्यमंत्रियों से इस संबंध में बात करके
सर्वसम्मति बना चुके हैं लेकिन फिर भी सवाल उठता है कि क्या राज्य सरकारें केंद्र के लॉकडाउन
को मानने से इनकार कर सकती है। खासकर, जब यह रिपोर्ट आई थी कि केंद्र की सख्ती के
बावजूद पश्चिम बंगाल में लॉकडाउन में ढील दिए जाने के कई मामले सामने आए थे। संविधान के
मुताबिक, केंद्र से घोषित लॉकडाउन को मानने के लिए राज्य सरकारें बाध्य हैं।
संविधान का अनुच्छेद 254 कहता है कि यदि किसी राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई विधि
का कोई उपबंध संसद द्वारा बनाई गई विधि के किसी उपबंध के विरुद्ध है तो संसद द्वारा बनाया
गया कानून प्रभावी होगा। इसके अलावा ऐसे मामलों में राष्ट्रपति के पास भी ऐसी आपात शक्तियां
हैं, जिनसे वह राज्यों को इन्हें मानने के लिए बाध्य कर सकते हैं।