हाल ही में पाकिस्तान के सांसद उमर फारूक के एक बयान ने न केवल देश की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े किए, बल्कि बलूचिस्तान में चल रहे विद्रोह और भारत पर लगाए जाने वाले आरोपों की सच्चाई भी उजागर कर दी। अपने भाषण में उन्होंने यह साफ कहा कि बलूचिस्तान में हो रहे हमलों के लिए भारत को जिम्मेदार ठहराना गलत है क्योंकि हमलावर कोई बाहरी नहीं, बल्कि पाकिस्तान के ही लोग हैं।
ऑपरेशन सिंदूर और भारत की सैन्य रणनीति
यह पूरा मामला तब सामने आया जब भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में स्थित आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया। भारत की इस कार्रवाई को आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक कदम माना गया। रिपोर्ट्स के अनुसार, भारतीय सशस्त्र बलों ने पाकिस्तान की सीमाओं के अंदर तक घुसकर न केवल आतंकी ठिकानों को तबाह किया, बल्कि सैन्य ठिकानों पर भी सटीक हमले किए।
पाकिस्तानी संसद में इस मुद्दे पर चर्चा के दौरान उमर फारूक ने सवाल उठाया कि भारत इतनी गहराई तक पाकिस्तान में कैसे घुस आया। उन्होंने खास तौर पर चकलाला एयरबेस और वहां के आसपास स्थित जीएचक्यू (GHQ) का जिक्र करते हुए कहा कि इतनी संवेदनशील जगह पर हमला होना हमारी सुरक्षा एजेंसियों की विफलता का प्रमाण है। उनका सवाल सीधा था: “अगर भारत इतना अंदर घुस सकता है, तो हमारी सुरक्षा व्यवस्था कहां थी?”
बलूचिस्तान में आंतरिक विद्रोह और सच्चाई
बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा और प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर प्रांत है। यहां लंबे समय से बलूच अलगाववादी संगठन अधिक स्वायत्तता और संसाधनों पर अधिकार की मांग कर रहे हैं। इन आंदोलनों को अक्सर सरकार आतंकवाद कहकर दबाती है और भारत पर समर्थन का आरोप लगाती रही है।
लेकिन उमर फारूक का बयान इन आरोपों की बुनियाद हिला देता है। उन्होंने कहा, “भारत से कोई बम या लोग नहीं आते, हमलावर हमारे ही लोग हैं।” यह स्वीकारोक्ति बहुत कुछ कहती है। इसका अर्थ यह भी है कि बलूचिस्तान में जो कुछ हो रहा है, वह पूरी तरह आंतरिक असंतोष का नतीजा है।
एजेंसियों की जवाबदेही पर सवाल
उमर फारूक ने अपनी ही देश की खुफिया और सैन्य एजेंसियों पर सवाल उठाते हुए पूछा कि अगर भारत पर लगातार आरोप लगाए जा रहे हैं, तो हमारे सिस्टम की भूमिका क्या है? उन्होंने कहा, “हम अपनी ही सेना से सवाल क्यों नहीं कर रहे हैं? हमारी एजेंसियां क्या कर रही हैं?” यह बयान पाकिस्तान के भीतर उठ रही असहमति और असंतोष को दर्शाता है।
उनका यह भी कहना था कि बलूचिस्तान में बड़ी संख्या में लोगों को गिरफ्तार किया जा रहा है, जिससे यह संकेत मिलता है कि सरकार आंतरिक आवाजों को दबाने की कोशिश कर रही है, बजाय इसके कि उनकी मांगों को समझा जाए या समाधान की दिशा में काम किया जाए।
पाकिस्तान का प्रोपेगैंडा और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छवि
पाकिस्तान लंबे समय से अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत पर मानवाधिकार उल्लंघन और सीमा पार हमलों के आरोप लगाता रहा है। हालांकि, उमर फारूक जैसे सांसद के बयान इस पूरे प्रोपेगैंडा की पोल खोलते हैं। उनका बयान यह दर्शाता है कि जो चित्र सरकार द्वारा पेश किया जाता है, वास्तविकता उससे काफी अलग है।
विदेशी मीडिया रिपोर्ट्स और सैटेलाइट तस्वीरें पहले ही यह साबित कर चुकी हैं कि पाकिस्तान को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में भारी नुकसान हुआ है, लेकिन आधिकारिक रूप से वहां की सरकार इसे नकारती रही है।
लोकतंत्र में खुली बहस की ज़रूरत
उमर फारूक का यह भी कहना था कि यदि उनके बयान से कोई नाराज है, तो उन्हें खुली बहस में आकर अपने विचार रखने चाहिएं। उन्होंने यह चुनौती सार्वजनिक रूप से दी कि देश की सुरक्षा, रणनीति और आंतरिक नीतियों पर गंभीर विचार-विमर्श होना चाहिए।
यह बात दर्शाती है कि पाकिस्तान के अंदर भी एक वर्ग ऐसा है जो लोकतांत्रिक मूल्यों और पारदर्शिता की मांग कर रहा है। लोकतंत्र की यही खूबी होती है कि वहां सवाल पूछे जा सकते हैं और जवाबदेही तय की जा सकती है।
निष्कर्ष
पाकिस्तानी सांसद उमर फारूक के बयान ने न केवल बलूचिस्तान की सच्चाई उजागर की, बल्कि भारत पर बेबुनियाद आरोपों को भी सवालों के घेरे में ला खड़ा किया है। उनका यह स्वीकार करना कि हमलावर अपने ही देश के लोग हैं, एक साहसी कदम है, जो पाकिस्तान की जनता को आत्ममंथन के लिए प्रेरित कर सकता है।
यह वक्त है कि पाकिस्तान की सरकार और सेना देश की आंतरिक समस्याओं की जड़ों को समझे और बाहर दोष देने की रणनीति से हटकर अपने लोगों की बात सुने। अगर ऐसा हुआ, तो न केवल बलूचिस्तान में शांति आ सकती है, बल्कि दक्षिण एशिया में स्थायित्व और विश्वास का माहौल भी बन सकता है।